नई दिल्ली। एंटीजन से अधिक प्रामाणिक मानी जाने वाली रीयल टाइम पालीमरेज चेन रियेक्शन (RTPCR) जांच अब कोरोना के बदलते स्वरूप के चलते यह भी दूसरे नंबर पर आ गई है। यही वजह है कि यह जांच कोरोना संक्रमण को ठीक तरह से नहीं पकड़ पा रही है, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीजन (Antigen) की जांच सौ फीसद खरी है।
बता दें कि देश के विभिन्न शहरों में ऐसे मरीज आ भी रहे हैं, जिनमें यह रिपोर्ट निगेटिव हैं, लेकिन हालत गंभीर होने की वजह से उनका हाई रेजोल्यूशन सीटी (HRCT) किया जा रहा है। जांच के बाद पता चल रहा है कि फेफड़ों में कोरोना का संक्रमण है।
नए स्ट्रेन के मरीजों में एचआरसीटी व लैब (HRCT & Lab) की बाकी जांच वायरस की पुष्टि कर सकते हैं। जब तक कोई और बीमारी न पता चले, कोविड के दावे को माना जाए। देश के कई शहरों में डॉक्टर इस प्रकार के मामले आने की पुष्टि कर रहे हैं और रेडियोलॉजिकल जांच में पुष्टि होने पर मरीजों को कोविड-19 का इलाज दे रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से ठीक होने वाले हर तीसरे इंसान को लंबे समय तक दिमागी और स्नायुतंत्र से जुड़ी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें ज्यादातर लोग घबराहट और अवसाद के शिकार हो रहे हैं।
यह खुलासा एक शोध में हुआ है, जिसमें दो लाख से ज्यादा लोगों के स्वास्थ्य पर नजर रखी गई थी। लैंसेट साइकिएट्री में छपे अध्ययन के मुताबिक, संक्रमण के छह महीनों में 34 फीसदी लोगों ने मनोवैज्ञानिक या स्नायुतंत्र से जुड़ी बीमारियों का इलाज कराया है। संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में आठ महीने बाद 10 में से किसी एक व्यक्ति में दोबारा कोरोना के गंभीर लक्षण मिल रहे हैं। यह खुलासा वैज्ञानिकों ने एक चिकित्सीय अध्ययन में किया है। इसका सीधा निगेटिव असर लोगों के सामाजिक और निजी जीवन पर पड़ रहा है।
प्रो. चार्लोट थालिन का कहना है कि युवा और स्वस्थ व्यक्तियों में कोरोना के बाद के लंबे समय तक होने वाले लक्षणों की जांच कर रहे हैं। इनमें सूंघने, स्वाद की क्षमता का खो देना अहम है। लोगों में थकान और सांस फूलने की समस्या वालों को अध्ययन में शामिल किया था।।
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