
– बड़ी बेदर्द है यह मौत…जिंदगी रहते कारवां साथ रहता है… मौत के बाद चार कांधे भी नसीब नहीं
इंदौर। शायद इससे बेरहम मौत कोई नहीं होगी, जब जिंदगी रहते पूरा कारवां साथ रहता है, लेकिन अंतिम समय में जीवनभर साथ निभाने वाले अपने तक भी हाथ नहीं लगाते हैं। यार-दोस्त भी निगाहें फेरकर निकल जाते हैं। हर कोई अपनी जान की खैर मनाता है। वो दो पराए किसी गाड़ी में वजन की तरह शव को डालकर लाते हैं। दूर खड़े परिजनों के सामने उनके अपनों को खींचते-घसीटते लकडिय़ों पर लिटाते हैं। न कोई क्रिया-कर्म होता है और न ऐसे शवों की यात्रा… शवों को लकडिय़ों पर घसीटकर यह दो लोग ही उसे फूंक डालते हैं। बेबसी की यह दर्दनाक तस्वीर अपनी आंखों में समेटे उनके वो परिजन चले आते हैं, जो कभी उनका अपना सहारा थे। इस बेदर्द और बेरहम मौत का न कोई साक्षी होता है और न ही अफसोस जताने वाला। इंदौर के लगभग सभी मुक्तिधामों पर कोरोना मरीजों की यह दर्दनाक मुक्ति हर दिन उन लोगों की आंखों के सामने से गुजरती है, जो इन मुक्तिधामों का संचालन करते हैं।

कोरोना मरीजों की मौत के बाद पहले तो प्रशासन द्वारा ही उनका अंतिम संस्कार किया जाता था, यहां तक कि परिजनों को भी केवल सूचना मात्र दी जाती थी, लेकिन जब से सारे निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों का इलाज होने लगा और इन निजी अस्पतालों में मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया, तब से अस्पतालों ने भी मृतकों से पीछा छुड़ाने के लिए परिजनों को शव सौंपना शुरू कर दिए। परिजन अस्पतालों द्वारा निर्धारित एंबुलेंस या शव वाहन के माध्यम से कोरोना मृतकों को श्मशान स्थल तक ले जाते हैं। इन वाहनों में भी पीपीई किट पहने अस्पताल के ही कर्मचारी या अस्पताल द्वारा शवों के निपटान के लिए निर्धारित किए गए अधिकतम दो लोग शामिल होते हैं। इस शव वाहन के पीछे परिजन मुक्तिधामों तक पहुंचते हैं और दूर खड़े होकर अपने परिजन के अंतिम संस्कार को निहारते रहते हैं। यहां पहुंचकर बेबसी का दृश्य तब नजर आता है, जब वो दो लोग शव को उठा नहीं पाते हैं तो गाड़ी से घसीटकर निकालते हैं और घसीटते हुए ही चिता की वैदी तक लाते हैं। इस दौरान मुक्तिधाम का ओटला उनकी मुश्किलें बढ़ाता है। पीपीई किट में पसीना-पसीना हुए यह लोग भले ही बेदर्द समझे जाएं, लेकिन उनकी अपनी मजबूरी है कि उनकी मदद के लिए कोई हाथ साथ नहीं होता है। परिजन भी इस स्थिति को समझकर खामोश रह जाते हैं। कुछ परिजन हिम्मत कर पीपीई किट पहनकर अंतिम संस्कार में शामिल भी होते हैं, लेकिन डॉक्टरों की हिदायत से सहम जाते हैं कि उन्हें संक्रमण से बचना है। जैसे-तैसे शव लाने वाले अस्पताल के कर्मचारी बिना किसी क्रिया-कर्म के कोरोना मरीजों की की चिता को अग्नि देकर संस्कार की क्रिया पूर्ण करते हैं। कई स्थानों पर परिजन अग्नि देने के लिए पीपीई किट पहनकर आते हैं, लेकिन वे भी अग्नि देने के तत्काल बाद दूर कर दिए जाते हैं।

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