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भारतीय Banking क्षेत्र पर गहराता संकट, सरकारी बैंकों पर ज्यादा खतरा

March 09, 2021

नई दिल्ली । एनपीए (non performing asset) और कर्ज (Loan) की लागत बढ़ने से भविष्य में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र पर संकट बढ़ सकता है। फिच रेटिंग (Fitch Rating) ने सोमवार को कहा कि पहले से मुश्किलों से गुजर रहे वित्तीय क्षेत्र को लॉकडाउन (Lockdown) के कारण पिछले साल और बड़ा धक्का लगा।


इसके अलावा, कोरोना महामारी (Corona Pandemic) से जूझ रही अर्थव्यवस्था (economy) को रफ्तार देने के लिए शुरू की गईं आसान कर्ज देने की नीतियों में भी बदलाव आ रहा है। जोखिम के डर से बैंक आसानी से कर्ज नहीं दे रहे हैं। हालांकि, तिमाही रिपोर्ट से पता चलता है कि वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के मुनाफे और संपत्ति की गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ है। 

फिच का कहना है कि हाल में आया सुधार महामारी की वजह से वित्तीय क्षेत्र पर पड़े दबाव पर एक मुखौटा मात्र है। वास्तविक हालात इससे अलग हैं, जो बताते हैं कि बैंकों पर आगे चलकर महामारी के कारण छोटे कारोबारियों पर पड़े प्रभाव और बढ़ी बेरोजगारी का असर देखने को मिल सकता है। आरबीआई ने भी जनवरी में चेतावनी दी थी कि सबसे ज्यादा दबाव वाली स्थिति में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र का बैड लोन दोगुना यानी 14.8 फीसदी के आसपास तक जा सकता है।

कर्ज देने के दबाव से संपत्ति की गुणवत्ता पर असर
रेटिंग एजेंसी ने नोट में कहा, असंगठित अर्थव्यवस्था एवं छोटे कारोबार (Unorganized Economy and Small Businesses) पर कोरोना के असर, उच्च बेरोजगारी दर और घटते निजी उपभोग का बैंकों की बैलेंसशीट पर पड़ने वाला वास्तविक प्रभाव अभी तक पूरी तरह देखने को नहीं मिला है। आगे इसका पूरा असर दिखेगा।

फिच का कहना है कि तीसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी देखने को मिली है, लेकिन बहुत क्षेत्र अपनी क्षमता से कम स्तर पर काम कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के कुछ संकेतक भी खुदरा ग्राहकों पर दबाव की ओर इशारा कर रहे हैं। खुदरा ग्राहकों और दबाव से गुजर रहे छोटे-मझोले उद्योगों को कर्ज देने की दबाब के कारण बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता पर और दबाव देखने को मिल सकता है।

सरकारी बैंकों पर ज्यादा खतरा, निजी बैंकों में वृद्धि के संकेत
फिच ने कहा कि सीमित बफर की वजह से सरकारी बैंक (Government Banks) कोरोना से जुड़े दबाव का ज्यादा आसान शिकार हो सकते हैं। हालांकि, निजी बैंक को उतना खतरा नहीं है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने 2021-22 में सरकारी बैंकों में 5.5 अरब डॉलर पूंजी डालने का फैसला किया है, जो पर्याप्त नहीं है। बैंकिंग क्षेत्र को दबाव से उबारने के लिए 15 से 58 अरब डॉलर पूंजी की जरूरत होगी। फिच के मुताबिक, 2021-22 में सरकारी बैंकों के मुकाबले निजी बैंकों में ज्यादा बेहतर वृद्धि देखने को मिलेगी।

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