
इंदौर। 70 के दशक में शहर में हरियाली 30 प्रतिशत थी, जो अब घटकर मात्र 9 प्रतिशत रह गई है। नवलखा, पलासिया, लालबाग, पीपली बाजार, इमली बाजार, बड़वाली चौकी जैसी जगहों के नाम वहां मौजूद बाग-बगीचों के कारण ही पड़े, लेकिन अब विकास के नाम पर यहां बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं और यही वजह है कि शहर का तापमान भी बढ़ा है। दूसरे कारण की बात करें, तो वो ये हैं कि बड़ी संख्या में ईंधन से चलने वाले वाहनों में वृद्धि। शहर को हमने साफ-सफाई में तो नंबर वन बना दिया, शिक्षा में भी हब बना दिया और अब आवश्यकता है कि शहर हरियाली में भी हब बने। इसके लिए हमें एक साथ आकर पुराने पेड़ों को कटने से बचाने के साथ ही बड़ी संख्या में नए पौधे लगाने होंगे।
‘विश्व पर्यावरण दिवस’ से पूर्व शहर की सामाजिक संस्था सेवा सुरभि के मंच से ये विचार शहर के पर्यावरणविदों और प्रबुद्धजनों ने व्यक्त किए। वक्ताओं में अजीतसिंह नारंग ने कहा कि किसी भी शहर का विकास हवा, पानी और हरियाली के आधार पर होना चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे नीति निर्माताओं ने ऐसा नहीं किया। वर्ष 1851 से 1900 के मध्य तापमान में मात्र दशमलव चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि पिछले 20 साल में इससे डेढ़ गुना अधिक वृद्धि हुई। पर्यावरणविद् डॉ. ओपी जोशी ने उन्होंने कहा कि हरियाली की समाप्ति के साथ-साथ इंदौर शहर की पहचान ही समाप्त कर दी। जल विशेषज्ञ एवं पर्यावरणविद् डॉ. सुधींद्र मोहन शर्मा ने कहा कि जितना भूजल का दोहन अमेरिका और चीन करते है, उतना अकेला भारत करता है, लेकिन भूजल बढ़ाने के लिए हम प्रयास कम करते हैं। सांवेर और देपालपुर जल के अतिदोहन क्षेत्र हैं। कार्यक्रम में ओमप्रकाश नरेड़ा, नरेंद्र सिंघल, गोविंद मंगल, रामेश्वर गुप्ता, कुमार सिद्धार्थ, अतुल सेठ, हरेराम वाजपेयी मोहन अग्रवाल, मुकुंद कुलकर्णी, अनिल गोयल, अनिल त्रिवेदी, प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी सहित बड़ी संख्या में शहर के नागरिक उपस्थित रहे।
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