
नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में एक याचिका (Petition) दायर कर आतंकवादी मोहम्मद अफजल गुरु (terrorist Mohammad Afzal Guru) और मोहम्मद मकबूल भट्ट (Mohammad Maqbool Bhatt) की कब्रों (graves) को जेल परिसर से हटाने का निर्देश देने की मांग की गई है। इन दोनों को मौत की सजा सुनाई गई थी और तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी दी गई थी।
जनहित याचिका (पीआईएल) में संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की गई है कि यदि जरूरी हो तो पार्थिव अवशेषों को कानून के अनुसार किसी गुप्त स्थान पर भेज दिया जाए ताकि आतंकवाद के महिमामंडन और जेल परिसर के दुरुपयोग को रोका जा सके।
विश्व वैदिक सनातन संघ द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि राज्य-नियंत्रित इल जेल के अंदर इन कब्रों का निर्माण और उनका बने रहना अवैध, असंवैधानिक और जनहित के खिलाफ है।इसमें आरोप लगाया गया है कि इन कब्रों की उपस्थिति ने तिहाड़ जेल को ‘कट्टरपंथी तीर्थस्थल’ में बदल दिया है, जहां दोषी ठहराए गए चरमपंथी तत्व आतंकवादियों की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं।
याचिका में कहा गया है कि यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि भारत के संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ आतंकवाद को भी बढ़ावा देता है।
याचिका में दावा किया गया है कि जेल के अंदर इन कब्रों का होना दिल्ली कारागार नियम, 2018 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। यह नियम फांसी दिए गए कैदियों के शवों का इस तरह से निपटान करने का आदेश देता है जिससे उनकी महिमामंडन को रोका जा सके, जेल अनुशासन सुनिश्चित हो और सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे।
याचिका में अदालत से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है ताकि प्रतिवादियों को तिहाड़ जेल से उक्त कब्रों को हटाने का निर्देश दिया जा सके। जैसा कि अजमल कसाब और याकूब मेमन जैसे फांसी दिए गए आतंकवादियों के मामलों में किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि भट्ट और गुरु, दोनों ने चरमपंथी जिहादी विचारधारा के प्रभाव में आकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया। उनकी गतिविधियों से भारत की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया। मकबूल भट्ट को 1984 में जबकि अफजल गुरु को फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी।
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