
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने गुरुवार को केंद्र सरकार (Central government) को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें समलैंगिक जोड़ों (Gay Couples) को मेडिकल अभिभावक (medical guardian) के रूप में कानूनी मान्यता देने के लिए दिशानिर्देश बनाने का आग्रह किया गया है। इससे समलैंगिक जोड़ों को मेडिकल स्थितियों में एक-दूसरे की ओर से सहमति देने की अनुमति मिल सकेगी। जस्टिस सचिन दत्ता ने याचिका के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, विधि एवं न्याय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और नेशनल मेडिकल कमीशन से जवाब मांगा।
याचिका अर्शिया टक्कर की ओर से दायर की गई है जो अधिवक्ता मिस चांद चोपड़ा के साथ लंबे समय से समलैंगिक संबंध में हैं। अर्शिया टक्कर और चांद चोपड़ा का जोड़ा जून 2015 से साथ है। दोनों की दिसंबर 2019 में सगाई हुई थी। बता दें कि सुप्रिया चक्रवर्ती एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अर्शिया टक्कर और चांद चोपड़ा ने 14 दिसंबर, 2023 को न्यूजीलैंड में कानूनी रूप से विवाह कर लिया था। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने के मौलिक अधिकार की पुष्टि की थी।
याचिका भारतीय मेडिकल फ्रेमवर्क के भीतर सेम सेक्स विवाह को मान्यता देने की जरूरत पर प्रकाश डालती है। चांद चोपड़ा का परिवार दिल्ली से बाहर या विदेश में रहता है। इससे दोनों को एक दूसरे के लिए मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में मदद करना अव्यावहारिक हो जाता है। मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में उनके साथ रिश्ता होने के बावजूद अर्शिया टक्कर चांद चोपड़ा की मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में काम नहीं कर पाती हैं। टक्कर ने दलील दी कि यह भेदभावपूर्ण हैं और संवैधानिक गारंटियों का उल्लंघन है।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए वह दलील देती हैं कि लैगिक आधार पर भेदभाव समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि मेडिकल संबंधी निर्णय लेने के अधिकार से वंचित करना अनुच्छेद 19(1)(क) और (ग) का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है जो व्यक्तिगत संबंधों में सम्मान और आजादी के साथ जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
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