
इन्दौर। इंदौर संभाग में नाबालिग गर्भवती बच्चियों के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि पिछले एक महीने में ही आठ प्रकरण इंदौर में सामने आ चुके हैं। सुसनेर में 2, पीथमपुर में 1, इंदौर में 2 और आलीराजपुर, धार व झाबुआ में एक-एक मामला दर्ज होने से प्रशासन की नींद उड़ी हुई है। चिंताजनक यह है कि दूसरे जिलों से आकर इंदौर के अस्पतालों में नाबालिगों की डिलेवरी कराई जा रही है और निजी अस्पताल इन मामलों को दबाते हुए पुलिस और बाल कल्याण समिति से जानकारी छुपा रहे हैं, जबकि कानून के अनुसार किसी भी नाबालिग गर्भवती विशेषकर असामान्य हालात में आई बच्ची के मामले में तुरंत पुलिस को रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
आदिवासी इलाकों में भागकर शादी करने की परंपरा और लिव-इन के बढ़ते मामलों ने इंदौर के महिला बाल विकास अधिकारियों की नींद हराम कर दी है। इस महीने ही आलीराजपुर-झाबुआ क्षेत्र से भागकर आए दो नाबालिग जोड़ों में बच्चियां गर्भवती पाई गई हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की निगरानी के बावजूद यह मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा हर गर्भवती महिला को फोलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम की दवाइयों के साथ टीकाकरण व हर माह की जांच अनिवार्य है। उसके बावजूद यह प्रकरण महिला एवं बाल विकास विभाग के संज्ञान में भी क्यों नहीं आए यह जांच की जा रही है। सूत्रों के अनुसार हर दिन नाबालिग लड़कियां बाल कल्याण समिति के समक्ष पहुंच रही हैं, परंतु अस्पतालों से रिपोर्टिंग के मामले लगभग नगण्य हैं। निजी अस्पताल जहां डिलेवरी कर तो देते हैं, लेकिन पूरी प्रक्रिया गुप्त तरीके से निपटा दी जाती है। बड़ा खुलासा तब हुआ, जब गीता भवन स्थित एक निजी अस्पताल ने नाबालिग की डिलेवरी करवा दी, लेकिन जानकारी छुपा ली। बाद में बच्चे की जांच के लिए जब वह एमटीएच अस्पताल पहुंची, तभी नाबालिग होने का खुलासा हुआ। यह सीधा-सीधा कानून और पॉक्सो एक्ट का उल्लंघन है, जिसमें सूचना न देने पर अस्पताल प्रबंधन भी अपराधी माना जाता है।
रूटीन नहीं, यह अपराध है
सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण के लिए या नवजात की तबीयत बिगडऩे या रैफरल के दौरान पहुंचे मामलों से इन 8 प्रकरणों का खुलासा हुआ है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कई मामले संज्ञान में ही नहीं आ रहे हैं। बच्ची नाबालिग है जानते हुए भी निजी अस्पताल लगातार ऐसे मामलों को ‘रूटीन केस’ बताकर छिपाने में लगे हैं, जिससे बच्चियों की सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न लग रहा है। बाल कल्याण समिति का कहना है कि कई निजी चिकित्सा संस्थान न तो जन्म की अनिवार्य जानकारी दे रहे हैं और न ही पुलिस को रिपोर्ट भेज रहे हैं, जो कानूनन दंडनीय है। हालांकि इन सभी मामलों में संवेदनशीलता रखते हुए बच्चियों को सुरक्षित संस्थाओं में रखा जा रहा है। कई मामलों में बच्चियों की उम्र 12 से 16 वर्ष के बीच पाई गई है, जो समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक चेतावनी है।
अब पूरे संभाग में उड़ेगा दस्ता
इंदौर संभाग में लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए अब इंदौर जिले का ‘उडऩदस्ता’ पूरे संभाग में सक्रिय किया जा रहा है, ताकि ऐसे मामलों की पहचान कर कार्रवाई तेजी से की जा सके। उडऩदस्ता शिक्षा, स्वास्थ्य और पुलिस विभाग के साथ मिलकर नाबालिगों की सुरक्षा और कानून लागू कराने की दिशा में काम करेगा। प्रशासन अब ऐसे अस्पतालों पर सख्ती की तैयारी में है। जांच के बाद जानकारी छुपाने वाले अस्पतालों पर एफआईआर, लाइसेंस निलंबन और आर्थिक दंड की कार्रवाई की जा सकती है। अस्पतालों को निर्देश जारी किए गए हैं कि चिकित्सा संस्थान कानून का पालन करते हुए हर नाबालिग गर्भवती का मामला तुरंत पुलिस व बाल कल्याण समिति को रिपोर्ट करें, ताकि बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और अपराधियों पर कार्रवाई हो सके।
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