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ब्रह्मोस के बावजूद भारत दिखा रहा LORA की खरीद में रूचि, पाकिस्‍तान और उसके मददगार आए टेंशन में

July 11, 2025

नई दिल्‍ली । अभी हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान पूरी दुनिया ने भारत (India) के सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल का दमदार परफॉर्मेन्स देखा। इसकी मारक क्षमता से पाकिस्तान दहल उठा और उसके मददगार देश भी सहम उठे। बावजूद इसके भारतीय वायु सेना (IAF) इजरायल की लॉन्ग रेंज आर्टिलरी (LORA) मिसाइल के अधिग्रहण पर विचार कर रही है, ताकि सुखोई-30 MKI जैसे लड़ाकू विमानों में उसे शामिल किया जा सके। जुलाई के पहले हफ्ते में वायु सेना द्वारा LORA की खरीद में रूचि दिखाए जाने की रिपोर्ट आई है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब भारत के पास ब्रह्मोस जैसा अचूक हथियार है तो फिर इजरायली LORA की क्या जरूरत? और क्या यह सेना में ब्रह्मोस की जगह लेगा?

क्या है LORA?
LORA एक सुपरसोनिक अर्द्ध-बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने बनाया है। इसे हवा से छोड़ा जा सकता है। यह 400-430 किलोमीटर दूर तक के लक्ष्यों पर हमला कर सकता है। यह सुखोई-30 MKI जैसे लड़ाकू विमानों से लॉन्च करने के लिए डिजायन किया गया है। हमले के दौरान दुश्मन द्वारा इसे इंटरसेप्ट करना मुश्किल होता है। इसके अलावा दुश्मनों के ठिकानों को टारगेट करने के लिए यह लचीला मार्ग अपनाता है। इसे बीच रास्ते में भी निर्देशित किया जा सकता है। ‘लॉन्च करो और भूल जाओ’ इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यानी हवा में छोड़ने के बाद यह खुद अपने निर्धारित लक्ष्य को आसानी से भेद सकता है।


LORA की और खूबियां क्या?
इसकी रेंज 400-430 किमी है। यानी इससे पाकिस्तान और चीन में निशाना साधा जा सकता है। इसकी गति करीब 6,174 किमी/घंटा है। यह 10 मीटर से कम की त्रुटि में सर्कुलर एरर प्रोबेबलिटी (CEP) के साथ सटीक निशाना साधने में सक्षम है। फायर-एंड-फॉरगेट तकनीक और उड़ान के दौरान अपडेट लेने की इसमें क्षमता है। यह हाई-वैल्यू टारगेट्स (जैसे दुश्मन के कमांड सेंटर या रडार) पर सुरक्षित हमले के लिए उपयुक्त है। इस मिसाइल की लंबाई 5.2 मीटर और वजन 1600 किलो है।

इस मिसाइल की नेविगेशन प्रणाली जीपीएस और इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) के संयोजन पर निर्भर करती है। यह एंटी जैमिंग सिस्टम से लैस है। विवादित क्षेत्रों में भी यह टारगेट साधने में सक्षम है। यह बंकरों, एयरबेस, नौसेना के ठिकानों और कमांड सेंटर को भी निशाना बना सकता है। एक सुखोई-30 MKI लड़ाकू जेट अपने साथ चार LORA मिसाइल ले जा सकता है। यानी इसके जरिए एक ही उड़ान के दौरान कई लक्ष्यों पर विनाशकारी हमले किए जा सकते हैं।

इसकी जरूरत क्यों?
बता दें कि भारत के पास पहले से ही सटीक निशाना साधने वाली लंबी दूरी की मारक मिसाइलों की एक श्रृंखला मौजूद है। उदाहरण के लिए ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो 300 से 500 किमी रेंज तक निशाना साध सकती है। इसके अलावा SCALP-EG जिसका राफेल में उपयोग होता है और यह 500 किमी की रेंज की क्षमता रखती है। कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल प्रलय (500 किमी रेंज) और हाल के ऑपरेशनों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल की गई हवा से जमीन पर मार करने वाली रैम्पेज मिसाइलें भी हैं।

तो ऐसे में LORA को क्यों खरीदने में IAF दिलचस्पी दिखा रहा है। इसका जवाब है हवाई मारक क्षमता को बढ़ाना और मेड इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के अभियानों को और आगे ले जाना। दरअसल, भारत इजरायली सहयोग के साथ LORA का उत्पादन भारत में करना चाहता है, ताकि इसका वह खुद भी इस्तेमाल कर सके और दूसरे देशों को निर्यात भी कर सके। यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रह्मोस एक लो-ऑल्टिट्यूड क्रूज मिसाइल है, जो समुद्र तल के करीब उड़ती है, जिससे यह दुश्मन की एयर डिफेंस को भेदने में सक्षम है, जबकि LORA एक क्वासी-बैलिस्टिक मिसाइल है, जो ऊंचाई से लॉन्च होती है और एक लोफ्टेड (ऊपर की ओर) ट्रैजेक्ट्री अपनाती है। यह दुश्मन के रडार को चकमा देने में मदद करती है और 430 किमी की दूरी तक घुसकर हमले कर सकती है।

पाक के मददगारों को झटका
ब्रह्मोस भारत-रूस का एक संयुक्त प्रोजेक्ट है, जो LORA के मुकाबले महंगा है। ब्रह्मोस की प्रति यूनिट लागत करीब 20 से 30 करोड़ रुपये है, जबकि LORA सस्ती है और निर्यात योग्य है। इसका भंडारण करना भी आसान है। लिहाजा, भारत LORA के जरिए रक्षा निर्यात में एक नई भूमिका और स्कोप देख रहा है। पाकिस्तान के मददगार देश चीन और तुर्की के लिए यह झटका हो सकता है क्योंकि उनकी मिसाइलें और हथियार ऑपरेशन सिंदूर के दौरान फुस्स हो चुके हैं। ऐसे में भारत ब्रह्मोस के अलावा LORA का भी वैश्विक निर्यातक बन सकता है।

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