नई दिल्ली । बांग्लादेश (Bangladesh) में 2024 की राजनीतिक उथल-पुथल ने न केवल ढाका की सत्ता बदली है, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को भी नया मोड़ दिया है। शेख हसीना (Sheikh Hasina) की सरकार के पतन के बाद मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार (Muhammad Yunus’s interim government) ने सत्ता संभाली, लेकिन इस बदलाव के साथ भारत के लिए नई सुरक्षा चिंताएं पैदा हो गई हैं। इनमें सबसे प्रमुख है उल्फा-आई (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट) के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ का मामला, जिसे पाकिस्तान कथित तौर पर चीन से निकालकर ढाका में बसाने की कोशिश कर रहा है। यह कदम पूर्वोत्तर भारत के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
परेश बरुआ, उर्फ परेश असम भारत के सबसे वांटेड उग्रवादियों में से एक है। वह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) का कमांडर-इन-चीफ और उल्फा-इंडिपेंडेंट (ULFA-I) का प्रमुख है। 1979 में स्थापित उल्फा का लक्ष्य असम को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र देश बनाना है। जहां उल्फा का मुख्य धड़ा 2023-24 में भारत सरकार के साथ शांति समझौते पर सहमत हुआ था, तो वहीं परेश बरुआ ने इसे ठुकरा दिया और अलगाववादी संघर्ष जारी रखा।
बरुआ का अतीत बांग्लादेश से गहराई से जुड़ा है। 2001-2006 के दौरान खालिदा जिया की बीएनपी-जमात सरकार ने उसे शरण दी थी। इसी दौर में 2004 का कुख्यात चटगांव हथियार कांड हुआ, जिसमें 10 ट्रकों में चीन निर्मित हथियार (ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर, मशीनगन आदि) जब्त किए गए थे, जो उल्फा सहित पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों के लिए थे।
बांग्लादेश की उथल-पुथल: हसीना से यूनुस तक
2024 में बांग्लादेश में छात्र आंदोलन ने भयंकर रूप लिया। कोटा सुधार की मांग से शुरू हुए प्रदर्शन सरकारी दमन के कारण हिंसक हो गए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। अंततः अगस्त 2024 में शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी और वे भारत आ गईं। नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया। हसीना सरकार भारत की मित्र थी। उन्होंने पूर्वोत्तर के उग्रवादियों पर सख्ती की, कई को भारत सौंपा और बांग्लादेश को एंटी-इंडिया गतिविधियों का अड्डा नहीं बनने दिया। लेकिन यूनुस सरकार के आने के बाद माहौल बदला। भारत विरोधी तत्व सक्रिय हो गए, अल्पसंख्यकों (खासकर हिंदुओं) पर हमले बढ़े और पाकिस्तान-चीन का प्रभाव बढ़ा। दिसंबर 2024 में बांग्लादेश हाईकोर्ट ने चटगांव मामले में बरुआ की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला (बाद में 14 साल तक कम हुई) और कई आरोपियों को बरी कर दिया। यह फैसला भारत के लिए चिंताजनक माना गया।
पाकिस्तान की साजिश: चीन से ढाका तक
हालिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई यूनुस सरकार के साथ मिलकर बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ा रही है। वे जमात-ए-इस्लामी को समर्थन दे रहे हैं और पूर्वोत्तर के पुराने उग्रवादियों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रहे हैं। खास तौर पर परेश बरुआ को चीन से निकालकर ढाका में बसाने की योजना है, ताकि वे बांग्लादेश से भारत के पूर्वोत्तर में अशांति फैला सकें- जैसे 2000 के दशक में होता था। यह पाकिस्तान-चीन की संयुक्त रणनीति का हिस्सा लगता है, जो भारत को कमजोर करने के लिए पूर्वोत्तर को अस्थिर करना चाहते हैं। पहले भी ISI ने उल्फा को ट्रेनिंग और हथियार दिए। अब यूनुस सरकार में पाकिस्तानी प्रभाव बढ़ा है। चटगांव मामले में परेश बरुआ की सजा कम होना इसी संकेत देता है।
पूर्वोत्तर भारत के लिए खतरा क्यों?
पूर्वोत्तर के सात राज्य (असम सहित) बांग्लादेश से लंबी सीमा साझा करते हैं। अगर बरुआ जैसे नेता ढाका से ऑपरेट करेंगे, तो उग्रवाद फिर भड़क सकता है- भर्ती, हथियार सप्लाई, ट्रेनिंग आदि। पहले भी बांग्लादेश उग्रवादियों का सुरक्षित ठिकाना रहा है। यूनुस सरकार में कट्टरपंथी ताकतों का उभार और पाक-चीन का दखल इस खतरे को बढ़ा रहा है।
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