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मालवा की पत्रकारिता के इतिहास पे बेहतरीन किताब लिखी डॉ. हेतावल ने

April 27, 2023

खेंचों न कमानो को न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।

इंदौर के सीनियर सहाफी (पत्रकार) डॉ. कमल हेतावल ने सहाफत में एक उम्र बिताई है। सहाफत में उनकी खिदमात मालवा में बहुत रही। हेतावल साब ने कई अखबारों में मुख़्तलिफ़ बीटों में काम किया। मिजाज़ से सहज और सरल डाकसाब ने मालवा की सहाफत की तारीख पे भोत उम्दा किताब लिखी है। इस किताब का उनवान है- मालवांचल की पत्रकारिता। ये किताब क्या है डॉ. हेतावल का काफी मेहनत से किया गया रिसर्च वर्क है। अगर आप मालवा की सहाफत की तारीख को समझना चाहते हैं तो ये किताब बहुत काम की है। मालवा के होलकर, पवार और सिंधियाओं के दौर में शाया होने वाले रोजऩामचों (दैनिक अखबारों) सहित गजट वगैरह के स्वरूप की इस किताब में उम्दा झलक है। मालवा की सहाफत (पत्रकारिता) के आज़ादी से पहले और आज़ादी के फ़ौरन बाद का इतिहास उम्दा समेटा गया है।

आंग्रेज़ों से बगावत करते अखबार, अवाम को जागरूक करते अखबार और हर आमफहम की मजबूती से बात रखते मालवांचल के अखबारों की उम्दा मंजऱकाशी इस किताब में नुमायां होती है। इंदौर, देवास और धार में इस दौर में शाया होने वाले अखबारों और अदब के रिसालों का उम्दा रिफरेंस इस किताब में उम्दा समेटा गया है। डॉ. कमल हेतावल मालवांचल की हिंदी सहाफत पे रिसर्च इस लिए भी अहम है कि आजादी के पहले और बाद में हिंदी सहाफत में मालवा इलाके की खास पहचान रही। इंदौर वो शहर रहा जहां क़दीमी सहाफत से लेके जदीद बल्कि जदीद तरीन सहाफत ने करवट बदली। उस दौर से लेके आज तलक छपने वाले स्तंभों का सटीक उल्लेख भी इस किताब में मिलता है। लिथो और ट्रेडिल मशीनों के दौर स शुरु हुई छपाई अब रोटरी सहित भोत लेटेस्ट मशीनों तक पहुंच गई। इंदौर के अखबारों ने सहाफत में बहुतेरे प्रयोग करे। तब से लेके अब तलक हुए अखबारों की छपाई और साज सज्जा के प्रयोगों पे भी किताब भेतरीन जानकारी देती है। कुल मिलाके डॉ कमल हेतावल की ये किताब सहफत के तालिबे इल्म (छात्रों) के लिए भोत काम का दस्तावेज़ साबित हो सकती है। बेहतर होता डाकसाब अपनी किताब में मालवा की आधुनिक सहाफत के अलम्बरदार राहुल बारपुते, राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी, अभय छजलानी और मानिकचंद्र वाजपेयी पे अलग से पीस लिखते। फिर भी सहाफत की तारीख में दिल्चस्पी रखने वाले लोगों को ये किताब ज़रूर पढऩी चाहिए।

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