img-fluid

शिक्षा और चिकित्साः जबानी जमा-खर्च

July 10, 2022

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वाराणसी में अखिल भारतीय शिक्षा समागम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली की दो-टूक आलोचना की और देश भर के शिक्षा शास्त्रियों से अनुरोध किया कि वे भारतीय शिक्षा प्रणाली को शोधमूलक बनाएं ताकि देश का आर्थिक और सामाजिक विकास तीव्र गति से हो सके। जहां तक कहने की बात है, प्रधानमंत्री ने ठीक ही बात कही है लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री और पिछले सभी प्रधानमंत्रियों से कोई पूछे कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कौन से आवश्यक और क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं?

पिछले 75 साल में भारत में शिक्षा का ढांचा वही है, जो लगभग 200 साल पहले अंग्रेजों ने भारत पर थोप दिया था। उनकी शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ जी-हुजूर बाबुओं की जमात खड़ी करना था। आज भी वही हो रहा है। हमारे सुशिक्षित नेता उसके साक्षात ज्वलंत प्रमाण हैं। देश के कितने नेता सिर्फ डिग्रीधारी हैं और कितने सचमुच पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी हैं? इसीलिए वे नौकरशाहों की नौकरी करने के लिए मजबूर होते हैं। हमारे नौकरशाह भी अंग्रेज की टकसाल के ही सिक्के हैं। वे सेवा नहीं, हुकूमत के लिए कुर्सी पकड़ते हैं। यही कारण है कि भारत में औपचारिक लोकतंत्र तो कायम है लेकिन असलियत में औपनिवेशिकता हमारे अंग-प्रत्यंग में रमी हुई है।

प्रधानमंत्री गर्व से कह रहे हैं कि उनके राज में अस्पतालों की संख्या 70 प्रतिशत बढ़ गई है लेकिन उनसे कोई पूछे कि इन अस्पतालों की हालत क्या है और इनमें किन लोगों को इलाज की सुविधा है? अंग्रेज की बनाई इस चिकित्सा-पद्धति को, यदि वह लाभप्रद है तो स्वीकार जरूर किया जाना चाहिए लेकिन कोई यह बताए कि आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपेथी, हकीमी-यूनानी चिकित्सा-पद्धतियों का 75 साल में कितना विकास हुआ है? उनमें अनुसंधान करने और उनकी प्रयोगशालाओं पर सरकार ने कितना ध्यान दिया है? पिछले सौ साल में पश्चिमी एलोपेथी ने अनुसंधान के जरिए अपने आपको बहुत आगे बढ़ा लिया है और उनकी तुलना में सारी पारंपरिक चिकित्साएं फिसड्डी हो गई हैं।

यदि हमारी सरकारें शिक्षा और चिकित्सा के अनुसंधान पर ज्यादा ध्यान दें और इन दोनों बुनियादी कामों को स्वभाषा के माध्यम से संपन्न करें तो अगले कुछ ही वर्षों में भारत दुनिया के उन्नत राष्ट्रों की टक्कर में सीना तानकर खड़ा हो सकता है। यदि शिक्षा और चिकित्सा, दोनों सस्ती और सुलभ हों तो देश के करोड़ों लोग रोजमर्रा की ठगी से तो बचेंगे ही, भारत शीघ्र ही महाशक्ति और महासंपन्न भी बन सकेगा। दुनिया में जो भी 8-10 राष्ट्र शक्तिशाली और संपन्न माने जाते हैं, यदि बारीकी से आप उनका अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि पिछले 100 वर्षों में ही वे वैसे बने हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा और चिकित्सा पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

Share:

  • कजाकिस्तान की एलेना रयबकिना ने रचा इतिहास, पहली बार जीता विंबलडन खिताब

    Sun Jul 10 , 2022
    लंदन। 17वीं वरीयता प्राप्त एलेना रयबकिना (Elena Rybakina) ने महिला एकल के फाइनल में दुनिया की नंबर दो खिलाड़ी ओन्स जबूर (ons jaboor) को हराकर अपना पहला विंबलडन खिताब (first Wimbledon title) जीत लिया है। रयबकिना ने लगभग दो घंटे से ज्यादा चले मुकाबले में 3-6, 6-2, 6-2 से जीत दर्ज की। इसके साथ ही […]
    सम्बंधित ख़बरें
    लेटेस्ट
    खरी-खरी
    का राशिफल
    जीवनशैली
    मनोरंजन
    अभी-अभी
  • Archives

  • ©2025 Agnibaan , All Rights Reserved