
नई दिल्ली: चुनाव आयोग (Election Commission) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए उन राजनीतिक दलों (Political Parties) पर सख्ती दिखाई है जो वर्षों से एक्टिव नहीं हैं. पिछले छह सालों से चुनाव न लड़ने और नियमों का पालन न करने वाले 474 गैर-मान्यता प्राप्त (Removed Unrecognized) राजनीतिक दलों को आयोग ने सूची से बाहर कर दिया. इस तरह पिछले दो महीनों में कुल 808 दलों को हटाया गया है. आयोग का कहना है कि यह कदम चुनावी व्यवस्था को साफ और पारदर्शी बनाने के लिए उठाया गया है.
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि जिन पार्टियों ने लगातार छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ा, उन्हें सूची से हटाना जरूरी था. इसी आधार पर 18 सितंबर को 474 दलों को डी-लिस्ट कर दिया गया. इससे पहले 9 अगस्त को 334 दलों को हटाया गया था. अब कुल 808 दल बाहर हो चुके हैं. इससे पहले देशभर में 2,520 गैर-मान्यता प्राप्त दल थे, जिनकी संख्या घटकर अब 2,046 रह गई है. इसके अलावा, देश में 6 राष्ट्रीय और 67 राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल भी मौजूद हैं.
चुवान आयोग ने यह कार्रवाई ऐसे समय पर की है जब नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. हटाए गए दलों में 14 दल बिहार से हैं. इसका सीधा मतलब है कि अब ये दल चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतार सकेंगे. अधिकारियों का कहना है कि कई दल न तो चुनाव लड़ रहे थे और न ही अपने सालाना खातों और खर्चों की रिपोर्ट जमा कर रहे थे. 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के दौरान 359 दल ऐसे पाए गए जिन्होंने ऑडिटिड अकाउंट्स और चुनावी एक्सपेंस रिपोर्ट जमा नहीं की.
पहले कई दल इनकम टैक्स और मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों का उल्लंघन करते पकड़े गए थे. चुनाव आयोग का मानना है कि इस तरह के निष्क्रिय या संदिग्ध दलों को हटाना जरूरी है ताकि व्यवस्था साफ और पारदर्शी बन सके. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड दलों को टैक्स छूट जैसी सुविधाएं मिलती हैं. ऐसे में जो दल एक्टिव नहीं हैं उन्हें सूची से बाहर करना व्यवस्था को बेहतर करेगा. हालांकि, हटाए गए दल चाहे तो बाद में फिर से पंजीकरण करा सकते हैं.
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