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EU: यूरोप में बढ़ रहा प्लास्टिक का इस्तेमाल, आधा भी रीसाइकल नहीं हो पा रहा माइक्रोप्लास्टिक कचरा

January 16, 2025

जिनेवा। प्लास्टिक कचरे (Microplastic waste) का उचित प्रबंध न होने और गलत नीतियों के कारण यह दिनोंदिन दुनिया के लिए बड़ी चुनौती (Big challenge.) बनता जा रहा है। पिछले एक दशक के दौरान दुनियाभर में खासकर यूरोप में प्लास्टिक का उपयोग (Plastic Use increased a lot) बहुत बढ़ गया है। 2021 में यूरोपीय संघ (ईयू) (European Union (EU) में हर एक व्यक्ति ने औसतन 36 किलो प्लास्टिक पैकेजिंग का कचरा पैदा किया। उस साल उत्पन्न 1.6 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक पैकेजिंग में से केवल 65 लाख टन ही रीसाइकिल हो पाया। यह जानकारी काउनास यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (केटीयू) के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन से सामने आई है। सस्टेनेबिलिटी नामक जर्नल में इसके निष्कर्ष प्रकाशित किए गए हैं।


अध्ययन में ये बातें आई सामने
अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग गंभीर समस्या बनी हुई है। रीसाइक्लिंग की कमी से न केवल लैंडफिल, भस्मीकरण संयंत्रों और प्रकृति में छोड़े गए कचरे की मात्रा बढ़ रही है, बल्कि माइक्रोप्लास्टिक के निर्माण में भी बढ़ोतरी होती है जो लगातार पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य की सेहत के लिए खतरनाक बनता जा रहा है।

हालांकि, प्लास्टिक कचरे को कम करना दुनिया का पहला लक्ष्य बना हुआ है, लेकिन पहले से प्रचलन में मौजूद प्लास्टिक के प्रबंधन के लिए रीसाइक्लिंग जरूरी है। 2025 तक 50 फीसदी प्लास्टिक को रीसाइकल करने का लक्ष्य यूरोपीय संघ हासिल नहीं कर पाया। अब 2030 तक 55 फीसदी का लक्ष्य रखा गया है।

समस्या के समाधान के लिए व्यापक नजरिए की जरूरत
शोधकर्ताओं के अनुसार, स्थिति को सुधारने के लिए कचरे की प्रबंधन प्रक्रिया को केवल एक तरफ से हल नहीं किया जा सकता है। यह बहुआयामी समस्या है। इसलिए इसके प्रति व्यापक नजरिए की जरूरत है। आर्थिक, पर्यावरणीय और कानूनी पहलुओं पर विचार किए बिना केवल रीसाइक्लिंग तकनीकों को बेहतर बनाने या नए तरीके खोजने पर जोर देना ही सही नहीं है।

यह नजरिया न केवल समस्या से निपटने में विफल होगा, बल्कि अन्य पहलुओं पर विचार करने की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है। यह समझने के लिए कि बाहरी कारण, प्लास्टिक पैकेजिंग रीसाइक्लिंग को कैसे प्रभावित करते हैं एक मैक्रो-पर्यावरणीय विश्लेषण किया गया। इसके तहत छह प्रमुख क्षेत्रों की जांच की गई। इसमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, पारिस्थितिकी और कानूनी कारण शामिल थे।

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