
नई दिल्ली । ठीक 22 साल पहले (Exactly 22 years Ago) आज ही के दिन (On this Day) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनावी सफर (Prime Minister Narendra Modi’s Election Journey) शुरू हुआ था (Started) । 24 फरवरी 2002 को पीएम मोदी ने पहली बार विधायक के रूप में गुजरात विधानसभा में कदम रखा था। राजकोट द्वितीय विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में उनकी जीत काफी प्रभावशाली रही थी। उन्होंने 14,728 वोटों के अंतर से चुनाव जीता था।
इसे पीएम मोदी के राजनीतिक करियर में निर्णायक क्षण के रूप में देखा गया, जो समय बीतने के साथ और उठता गया। राजकोट द्वितीय निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने जाने से चार महीने बाद ही वह गुजरात के मुख्यमंत्री बने। वह 2014 में प्रधान मंत्री चुने जाने तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करते रहे। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर ‘मोदी आर्काइव’ ने पहली बार विधायक चुने जाने के तुरंत बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र में पीएम मोदी के संबोधन का एक वीडियो साझा किया है। यह वीडियो पार्टी कार्यकर्ताओं और गुजरात को उस समय की यादों में ले जाता है, जब ‘ब्रांड मोदी’ बन रहा था।
पहली बार विधायक चुने जाने पर पीएम मोदी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा,“मैंने राजकोट के निवासियों से अनुरोध किया था कि वे मुझे कसकर पकड़ें और जाने न दें। उन्होंने मुझे विशिष्टता के अंक दिये।” यह पीएम मोदी के चुनावी इतिहास की शुरुआत थी। वह 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। बाद में उसी वर्ष 2002 के चुनावों में, मोदी ने मणिनगर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह 2007 और 2012 में मणिनगर से दोबारा चुने गए और 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
कहने की जरूरत नहीं है कि राजकोट द्वितीय से पहली बार उपचुनाव में उनकी जीत ने भारत और दुनिया के लिए एक आशाजनक युग की शुरुआत की। मुख्यमंत्री के रूप में, मोदी ने गुजरात का त्वरित पुनर्निर्माण और विकास सुनिश्चित किया, जो उस समय भूकंप से बड़े पैमाने पर तबाह हो गया था। राजकोट में नरेंद्र मोदी की चुनावी सफलता ने चुनावों के दौरान राजनीतिक प्रबंधन और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में उनके कौशल का प्रदर्शन किया। वह उस समय पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में कामयाब रहे, जब केशुभाई पटेल के शासनकाल के दौरान भाजपा की हालत खराब थी। कई चुनावी रणनीतियों और नारों के पीछे उनका दिमाग था, जिसने 1990 के दशक में केंद्रीय राजनीतिक मंच पर भाजपा की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया।
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