
नई दिल्ली । नोएडा के सेक्टर-18 (Noida sector 18)में बने डीएलएफ मॉल (DLF Mall)के लिए दी गई जमीन के मुआवजे(compensation for land) के मामले में अब नया मोड़ आ गया है। एक किसान ने फर्जीवाड़ा कर नोएडा प्राधिकरण से 295 करोड़ रुपये मुआवजा ले लिया। इसका खुलासा होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के अपने आदेश को रद्द कर नए सिरे से जांच करने को कहा है। अब प्राधिकरण कोर्ट में जमा कराई मुआवजे की पूरी रकम वापस मांगेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले नोएडा प्राधिकरण को 1 लाख 10 हजार रुपये प्रतिवर्ग मीटर के हिसाब से बेंगलुरु के किसान रेड्डी विरेन्ना को मुआवजा देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोएडा प्राधिकरण ने रेड्डी विरेन्ना से बातचीत कर मुआवजा राशि के रूप में 295 करोड़ रुपये देने पर सहमति बनाई। प्राधिकरण ने यह रकम सुप्रीम कोर्ट में जमा करा दी थी।
इसके बाद एक अन्य किसान विष्णु वर्धन ने भी इस जमीन को लेकर मुआवजा मांगा। इसके लिए प्राधिकरण और न्यायालय में अर्जी लगाई। उन्होंने दावा किया कि किसान रेड्डी विरेन्ना ने झूठे तथ्य प्रस्तुत कर अकेले मुआवजा राशि ले ली, जबकि इस जमीन में दो और साझेदार हैं। उसे और एक अन्य शख्स सुधाकर को मुआवजा न देकर गलत तरीके से बाहर कर दिया गया। सुनवाई में भी यह तथ्य साबित होने के बाद 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिए आदेश को रद्द कर दिया।
नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में रेड्डी की संपत्ति भी अटैच करने का आदेश दिया गया है। अब इस मामले में न्यायालय में जमा रकम को वापस मांगा जाएगा। भविष्य में जो भी न्यायालय का निर्णय आएगा, उसी के तहत मुआवजा राशि दी जाएगी।
एक करोड़ में खरीदी थी जमीन
जिस जमीन पर डीएलएफ मॉल बना हुआ है, उसमें से काफी जमीन सेक्टर-44 स्थित छलेरा बांगर के एक किसान की हुआ करती थी। रेड्डी विरेन्ना ने 24 अप्रैल 1997 को 14358 वर्गमीटर जमीन एक करोड़ रुपये में किसान से खरीदी थी। यहां पहले ही प्राधिकरण ने काफी जमीन का अधिग्रहण कर लिया था। प्राधिकरण ने सिर्फ 7400 वर्गमीटर जमीन रेड्डी के नाम वापस की। प्राधिकरण ने सेक्टर-18 में व्यावसायिक भूखंड योजना निकाली और 54320 वर्ग मीटर जमीन बेच दी। इस योजना में रेड्डी की जमीन भी शामिल कर ली गई। पूरी जमीन प्राधिकरण ने डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड को 173 करोड़ रुपये में बेच दी। रेड्डी ने नोएडा प्राधिकरण और डीएलएफ कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की।
बकाये का मामला विचाराधीन
सुप्रीम कोर्ट में 295 करोड़ रुपये जमा कराने के बाद नोएडा प्राधिकरण ने इसमें से करीब 235 करोड़ रुपये की राशि देने के लिए उसी समय डीएलएफ मॉल प्रबंधन को नोटिस भेजा था। नोटिस मिलने के बाद मॉल प्रबंधन ने रुपये जमा कराने से मना कर दिया। प्राधिकरण ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। यह मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है। बता दें कि वर्ष 1976 में नोएडा प्राधिकरण का गठन हुआ था। इस मामले को छोड़ दें तो अब तक सिर्फ एक किसान को इतना अधिक मुआवजा किसी को नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ता का दावा
किसान विष्णु वर्धन का कहना है कि दादरी तहसील के नायब तहसीलदार की लापरवाही के कारण उनका नाम खतौनी में दर्ज नहीं हुआ। इसके कारण वह मुआवजे से वंचित रह गए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 100 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की है। उनका दावा है कि संबंधित जमीन का हिस्सा उनके पास भी था और उचित मुआवजा मिलना चाहिए। खास बात यह है कि इस बिंदु को प्राधिकरण ने सिविल कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया था, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ।
‘न्याय और धोखाधड़ी साथ- साथ नहीं रह सकते’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धोखाधड़ी से प्राप्त कोई भी आदेश शून्य है। इसे चुनौती दी जा सकती है। भले ही यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्यों न हो। जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुयन की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि न्याय और धोखाधड़ी साथ-साथ नहीं रह सकते। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश को निरस्त करार दिया और मामले को दोबारा विचार के लिए भेज दिया। इसमें विष्णु वर्धन और सुधाकर को अतिरिक्त प्रतिवादी बनाया गया।
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