
देहरादून । उत्तरकाशी (Uttarkashi) के धराली (Dharali) में इस सप्ताह की शुरुआत में आई बाढ़ (flood) ने यहां न सिर्फ जमकर तबाही मचाई, बल्कि नदी के रुख को भी मोड़ दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की सैटेलाइट तस्वीरों (Satellite Images) से पता चला है कि बाढ़ ने भागीरथी नदी का रास्ता बदल दिया है, जिससे नदी की धाराएं भी चौड़ी हो गई हैं और नदी की आकृति बदल गई है। ऐसी मौजूदा स्थिति पर विशेषज्ञों ने गंभीर चिंताएं जताई हैं।
हाई मैग्नीट्यूड वाली बाढ़ के चलते धराली गांव के ऊपर स्थित भागीरथी की सहायक नदी खीरगाड़ पर मलबे के एक पंखे को नष्ट कर दिया, जिससे वह अपने पुराने मार्ग पर वापस आ गई और भागीरथी नदी अपने दाहिने किनारे की ओर मुड़ गई।
एक रिपोर्ट के अनुसार, इसरो की सैटेलाइट तस्वीरों में जून 2024 और इस वर्ष 7 अगस्त के आंकड़ों की तुलना करते हुए, लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले एक विशाल पंखे के आकार के मलबे के भंडार का पता चला है। इसका आकार लगभग 750 मीटर X 450 मीटर है, जो धराली के ठीक ऊपर खीरगाड़ और भागीरथी के संगम पर स्थित है। इन तस्वीरों में बड़े पैमाने पर परिवर्तित नदी मार्ग, जलमग्न या दबी हुई इमारतें और बड़े टोपोग्राफिकल बदलाव दिखाई दे रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और वरिष्ठ भूविज्ञानी पीयूष रौतेला ने बताया कि आपदा से पहले की तस्वीरों में खीरगाड़ के बाएं किनारे पर भागीरथी के संगम के ठीक ऊपर मलबे का एक त्रिकोणीय पंखा दिखाई दिया है। “यह जमाव एक पूर्व विनाशकारी ढलान-गति के दौरान बना था जिसने उस समय खीरगाड़ के मार्ग को मोड़ दिया था।”
उन्होंने कहा, “परंपरागत रूप से ऐसे भंडारों का उपयोग केवल कृषि के लिए किया जाता था, तथा भूस्खलन और बाढ़ के खतरे से बचने के लिए ऊंची व स्थिर जमीन पर घर बनाए जाते थे।”
रौतेला ने आगे कहा कि पिछले दशक में में पर्यटन में तेजी से वृद्धि और तीर्थयात्रियों की आमद के साथ-साथ सड़क के पास व्यावसायिक गतिविधियों ने जलोढ़ पंख पर बस्तियों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि अचानक आई बाढ़ ने पूरे पंखे के भंडार को नष्ट कर दिया और खीरगाड़ ने अपना पुराना रास्ता फिर से प्राप्त कर लिया। फिलहाल, मलबे ने भागीरथी नदी के प्रवाह को दाहिने किनारे की ओर धकेल दिया है, लेकिन समय के साथ यह इस भंडार को भी नष्ट कर देगा।
भू-आकृतिक बदलावों के क्या हो सकते हैं प्रभाव
जलविज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि इस तरह के अचानक भू-आकृतिक बदलावों का दूर तक व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। नदी के रास्ते बदलने से प्रवाह वेग बढ़ सकता है, तलछट परिवहन में बदलाव आ सकता है और बाढ़ स्थल से कई किलोमीटर दूर तटों में अस्थिरता आ सकती है। समय के साथ, इससे नए कटाव स्थल बन सकते हैं, पुलों को खतरा हो सकता है और बाढ़ के मैदान बदल सकते हैं, जिससे नदी किनारे के समुदायों को नए जलविज्ञान पैटर्न के अनुकूल होने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
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