
नई दिल्ली: टैरिफ वॉर (Tariff War) के एक ऐसी खबर सामने आई है, जो आपको गर्व से भर देगी. रायटर्स (Reuters) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की धमकियों को दरकिनार करते हुए भारत (India) ने रूसी तेल (Russian Oil) की खरीद न घटाने का फैसला किया है. बल्कि उल्टा, सितंबर महीने में भारत रूसी क्रूड ऑयल का आयात और 10 से 20 प्रतिशत बढ़ाने जा रहा है. इस फैसले से ऊर्जा बाजार में हलचल मच गई है. अमेरिका और यूरोप की टेंशन इससे और बढ़ने वाली है.
दरअसल, रूस की कई रिफाइनरी हाल ही में यूक्रेनी ड्रोन हमलों की वजह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं. इन हमलों के कारण रूस अपनी क्षमता के मुताबिक कच्चे तेल को प्रोसेस नहीं कर पा रहा. नतीजा यह हुआ कि रूस के पास अतिरिक्त क्रूड बच गया, जिसे वह किसी भी हालत में बेचना चाहता है. इसके लिए रूसी कंपनियों ने भारत जैसे बड़े खरीदार को और लुभाने के लिए कीमतों पर मोटी छूट देनी शुरू कर दी है.
सूत्रों के अनुसार, सितंबर में रूस ने अपने उरल्स क्रूड पर 2 से 3 डॉलर प्रति बैरल तक की छूट दी है. यह अगस्त की तुलना में ज्यादा है, जब डिस्काउंट सिर्फ 1.5 डॉलर प्रति बैरल था. भारत जैसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता देश के लिए यह डील फायदे का सौदा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक कोई बड़ा पॉलिसी बदलाव नहीं होता, भारतीय रिफाइनर रूसी तेल पर निर्भर बने रहेंगे.
भारत पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा रूसी क्रूड खरीददार बन चुका है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद जो तेल यूरोप और अमेरिका नहीं ले पा रहे थे, वह अब बड़ी मात्रा में भारत और चीन जा रहा है. अगस्त के पहले 20 दिनों में भारत ने रोजाना औसतन 15 लाख बैरल रूसी क्रूड खरीदा. यह भारत की कुल जरूरत का लगभग 40 प्रतिशत है. यानी हर 10 लीटर में से 4 लीटर तेल भारत रूसी स्रोत से ले रहा है.
लेकिन इस खरीद पर अमेरिका को आपत्ति है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत से आने वाले कुछ उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया. वॉशिंगटन का कहना है कि भारत डिस्काउंटेड ऑयल से मुनाफा कमा रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से रूस की जंग को फंड कर रहा है. दूसरी ओर भारत का जवाब है कि पश्चिमी देश डबल स्टैंडर्ड कर रहे हैं. अमेरिका और यूरोपीय यूनियन अब भी रूस से अरबों डॉलर के सामान खरीदते हैं, फिर भारत पर सवाल क्यों? नई दिल्ली साफ कर चुकी है कि उसकी प्राथमिकता ऊर्जा सुरक्षा है और इसके लिए वह अपने हितों को देखेगा.
यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के लिए भारत और चीन जैसे बाजार लाइफ लाइन बने हुए हैं. रूसी रिफाइनरियां जब तक दुरुस्त नहीं होतीं, तब तक रूस को अतिरिक्त तेल बाहर बेचना ही होगा. ऐसे में भारत को सस्ते क्रूड का फायदा मिलना तय है. ट्रेडिंग कंपनियों का अनुमान है कि सितंबर में भारत रोजाना 1.65 से 1.8 मिलियन बैरल तक तेल मंगा सकता है. अमेरिका और यूरोप लगातार रूसी तेल पर नए-नए प्रतिबंध और प्राइस कैप लगा रहे हैं. 2 सितंबर से यूरोपीय यूनियन ने रूसी क्रूड के लिए नई सीमा तय की है. 47.60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बिके तेल को वेस्टर्न सर्विसेज नहीं मिलेंगी. इसका सीधा मतलब है कि रूस को भारत और चीन जैसे देशों को और आकर्षक ऑफर देने पड़ेंगे. इसका फायदा भारत को मिलेगा.
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