
नई दिल्ली । ‘ऑपरेशन महादेव’ (Operation Mahadev) के दौरान मारे गए आतंकी ताहिर हबीब (Terrorist Tahir Habib) का जनाजा-ए-गायब पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (POK) के खाई गल्ला गांव में अदा किया गया। यह आयोजन पहलगाम हमले में पाकिस्तान (Pakistan) की संलिप्तता की दूसरी पुष्टि है। आपको बता दें कि जनाजा-ए-गायब का आयोजन शव नहीं होने की स्थिति में किया जाता है।
ताहिर हबीब मूल रूप से पाकिस्तान सेना का पूर्व जवान था। बाद में उसने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जॉइन किया और पहलगाम हमले में अहम भूमिका निभाई जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई थी। इंटेलिजेंस रिकॉर्ड में उसे ‘अफगानी’ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वह सदोई पठान समुदाय से था, जिसकी ऐतिहासिक जड़ें अफगानिस्तान और पुंछ विद्रोह से जुड़ी हैं।
जनाजे के दौरान लश्कर कमांडर रिजवान हनीफ वहां पहुंचा लेकिन ताहिर के परिजनों ने उसे अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना कर दिया। जब हनीफ ने जबरदस्ती करने की कोशिश की तो स्थानीय लोगों और लश्कर आतंकियों के बीच तीखी नोकझोंक हो गई। सूत्रों के अनुसार, “लश्कर के एक आतंकी ने बंदूक निकालकर लोगों को धमकाया, जिससे गांव वालों में आक्रोश फैल गया।”
एक स्थानीय सूत्र ने बताया, “लोग अब आतंकियों के खिलाफ सार्वजनिक बहिष्कार की योजना बना रहे हैं। यह पाकिस्तान के आतंक तंत्र के खिलाफ एक नई जन जागृति है।”
यह घटना दो अहम संकेत देती है। पहली पहलगाम हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता की एक और पुष्टि होती है। दूसरी बात यह कि पीओके में अब आतंकवाद का खुलकर विरोध होने लगा है।
आपको बता दें’ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने पहलगाम हत्याकांड का बदला लिया गया था। इसके बाद’ऑपरेशन महादेव’ के तहत इस हमले में शामिल बड़े आतंकियों का एनकाउंटर कर दिया गया।
ताहिर हबीब का झुकाव शुरू में इस्लामी जमीयत-ए-तुलबा (IJT) और स्टूडेंट लिबरेशन फ्रंट (SLF) की ओर था। उसके समुदाय सदोई पठानों की जड़ें अफगानिस्तान में हैं। वे 18वीं सदी में कश्मीर पहुंचे और पुंछ विद्रोह में अग्रणी भूमिका निभाई।
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