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G20: एक घंटे पहले तक नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर नहीं बन पाई थी सहमति, पीएम के कहने पर शेरपा ने संभाला मोर्चा

January 12, 2025

नई दिल्ली। जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले ही दिन आम सहमति से पारित हुए नई दिल्ली घोषणा-पत्र को लेकर बड़ा दावा किया गया। भारत के शेरपा अमिताभ कांत की किताब में लिखा गया है कि जी- 20 शिखर सम्मेलन शुरू होने से एक घंटे पहले तक नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति नहीं बन पाई थी। पीएम मोदी लगातार इसका अपडेट ले रहे थे।

नौ सितंबर 2023 को सम्मेलन शुरू होने से एक घंटे पहले जब पीएम को घोषणा-पत्र की स्थिति को लेकर बताया गया कि कुछ मुद्दों पर मामला अटका है, तो उन्होंने कहा कि बस आम सहमति बननी चाहिए। इसके बाद शेरपा अमिताभ कांत ने तुरंत मोर्चा संभाला और तुरंत अन्य शेरपाओं के साथ बैठक की। इसका नतीजा रहा कि सम्मेलन के पहले ही दिन नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति बन गई।

जी-20 शिखर सम्मेलन में नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति बनने के पीछे की कहानी शेरपा अमिताभ कांत ने अपनी किताब हाउ इंडिया स्केल्ड माउंट जी-20: द इनसाइड स्टोरी ऑफ द जी-20 प्रेसीडेंसी में लिखी है। उन्होंने लिखा कि नई दिल्ली घोषणा-पत्र के सिद्धांतों से लेकर अंतिम सहमति तक पहुंचने तक का सफर बिल्कुल आसान न था। 250 द्विपक्षीय बैठकों में 300 घंटों की बातचीत के बाद भी घोषणा-पत्र में संशोधन होते रहे। आपत्तियां आती रहीं। सभी देश इन बातचीत के महत्व और गंभीरता के महत्व को समझ रहे थे, लेकिन आम सहमति बनना दूर की कौड़ी लग रहा था।

किताब में कांत ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घोषणा-पत्र की स्थिति पर पूरी नजर रखे हुए थे। उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी थी। साथ ही उन्होंने मुझे हर दो घंटे में स्थिति से अवगत कराने के लिए कहा था। हम उन्हें जैसा अपडेट देते तो उनकी ओर से सलाह मिलती। इसका फायदा हुआ कि हमें वार्ता की रूपरेखा बनाने और प्रगति जानने में मदद मिलती रही।

कांत ने कहा कि यूक्रेन मुद्दे को लेकर दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति का मामला अटका हुआ था। रूस प्रतिबंध शब्द शामिल करने पर जोर दे रहा था। इसे लेकर मैंने ढाई घंटे तक रूसी संघ के विदेश मामलों के उप मंत्री अलेक्जेंडर पैनकिन के साथ बातचीत की। इस दौरान उनको अपने प्रस्ताव पर दोबारा विचार करने के लिए राजी किया। रूस का दांव बहुत ऊंचा था। क्योंकि अगर उसका प्रस्ताव मान लिया जाता तो वह अगल-थलग पड़ जाता और उसके खिलाफ वोट पड़ते। हमने रूस के प्रतिनिधि को बताया कि यह संभव नहीं है और अन्य देश इसके लिए तैयार नहीं होंगे। वहीं वार्ता के दौरान जी-7 देश भारत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को आमंत्रित करने के लिए दबाव डाल रहे थे, लेकिन हमारा मानना था कि अतिथि सूची केवल जी-20 नेताओं तक ही सीमित रहे।


कांन ने कहा कि जब रूस अपने प्रस्ताव से हटने को तैयार नहीं था तो मैंने विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर से सलाह ली। इसके बाद मैंने रूसी वार्ताकार को बताया कि अगर वे सहमत नहीं हुए तो प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद पहले वक्ता जेलेंस्की होंगे। यह साहसिक और दृढ़ वार्ता रणनीति अंततः काम आई और रूस ने झुकना स्वीकार कर लिया।

कांत ने नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति बनाने से पहले आई एक और बाधा की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि रूस के बाद चीन ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय टकराव के चलते आम सहमति से इनकार कर दिया। चीन का कहना था कि 2026 में जी-20 शिखर सम्मेलन अमेरिका में होगा। अमेरिका उन्हें वीजा नहीं देगा, यहां तक कि हांगकांग में उनके गवर्नर के लिए भी नहीं। चीन ने कहा कि जब तक उन्हें लिखित गारंटी नहीं मिल जाती कि उन्हें वीजा जारी किया जाएगा, तब तक सहमत नहीं होंगे।

शेरपा अमिताभ कांत ने किताब में लिखा कि नौ सितंबर को जी-20 शिखर सम्मेलन की बैठक शुरू होने से पहले पीएम मोदी भारत मंडपम आए थे। मुझे उनको घोषणा-पत्र की प्रगति के बारे में बताना था। जब मैंने उनको अमेरिका और चीन के मुद्दे के बारे में बताया तो वे थोड़ा रुक गए। पीएम ने कहा कि बहुपक्षीय बैठक में द्विपक्षीय मुद्दे क्यों उठाए जा रहे हैं? फिर उन्होंने कहा कि हम किसी प्रक्रिया में नहीं पड़ना चाहते बल्कि परिणाम के तौर पर आम सहमति चाहते हैं।

इसके बाद एक ओर नौ बजे सुबह जी-20 देशों के नेताओं की बैठक शुरू हुई तो वहीं दूसरी ओर हॉल से सटे कमरे में मैंने दोनों देशों के शेरपाओं से बात की। मैंने पाइल और ली के साथ मिलकर पत्र के विवरण तैयार किए। हमने गारंटी के बजाय सुनिश्चित शब्द का उपयोग करने का विकल्प चुना। दोपहर तक यह मामला सुलझ गया। चीन की सहमति और अमेरिका की दोनों शर्तें पूरी होने पर, रूस, अमेरिका, चीन, जी-7 तथा सभी देश घोषणा-पत्र के लिए सहमत हो गए।

नई दिल्ली में जी-20 के दौरान पहली बार ऐसा हुआ कि नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर पहले ही दिन सहमति बन गई। जबकि 2022 के बाली शिखर सम्मेलन में ऐसा नहीं हुआ था, जहां घोषणा-पत्र पर बातचीत अंतिम घंटों तक चलती रही थी। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। कांत की पुस्तक में बताया गया है कि कैसे भारत जो कभी विकासशील शक्ति के रूप में देखा जाता था, वह वैश्विक मंच पर नेतृत्व करने के लिए उभरा। भारत ने समाधान प्रस्तुत करते हुए, गठबंधन बनाते हुए, एक स्थायी विरासत का निर्माण करते हुए विकासशील और विकसित दोनों विश्वों की आकांक्षाओं पूरा किया। पुस्तक की प्रस्तावना विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लिखी है।

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