img-fluid

LoC पर भारतीय सैनिकों के दोस्त बने ‘गद्दी’ कुत्ते, बिना ट्रेनिंग यूं करते हैं सीमा की रखवाली

September 09, 2022

जम्‍मू कश्‍मीर। कश्मीर (Kashmir) में नियंत्रण रेखा (LoC) पर ‘गद्दी’ कुत्ते भारतीय सेना (Indian Army) के सबसे अच्छे दोस्त साबित हो रहे हैं. कश्मीर के यह स्थानीय कुत्ते सीमा पर सबसे पहले प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों में हैं, क्योंकि बिना ट्रेनिंग(without training) के भी ये कुत्ते किसी भी संदिग्ध गतिविधि का पता लगाने का ‘शानदार काम’ करते हैं. ये घुसपैठ के संभावित प्रयासों के बारे में सैनिकों को सचेत करते हैं.

इन कुत्तों को यह नाम खानाबदोश ‘गद्दी’ चरवाहों के नाम पर दिया गया, जो उन्हें भेड़ और बकरियों के झुंड के साथ रक्षक कुत्तों के रूप में पालते हैं. कुत्तों की यह नस्ल एक ‘हिमालयन शिपडॉग ’ है, जिसे ‘भोटिया’ या ‘बांगरा’ सहित कई अन्य नामों से भी जाना जाता है. कभी-कभी इसे हिमालयी मास्टिफ भी कहा जाता है.



यह स्थानीय कुत्ता पूर्वी नेपाल और कश्मीर में हिमालय (Himalaya) की तलहटी का मूल निवासी है. नस्ल का उपयोग मुख्य रूप से एक पशुधन संरक्षक के रूप में किया जाता है, जो विभिन्न शिकारियों से झुंड की रक्षा करता. इस तरह से यह कुत्ता एक संपत्ति रक्षक के रूप में कार्य करता है. शिकार करते समय इनका उपयोग सहायता के लिए भी किया जाता है.

जम्मू-कश्मीर के उत्तरी जिले कुपवाड़ा में केरन सेक्टर में शमसाबारी रेंज की अग्रिम चौकी पर तैनात एक सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘ये स्थानीय हैं, लेकिन आवारा कुत्ते नहीं हैं.’’ घुसपैठ रोधी बाधा प्रणाली (एआईओएस) के प्रथम चरण के तहत ये कुत्ते एलओसी की रखवाली करते हैं.

अधिकारी ने कहा कि जहां सेना पुरुषों और मशीनरी के संयोजन के साथ बाड़ की चौबीसों घंटे निगरानी के लिए उच्च तकनीक वाले उपकरणों का उपयोग करती है, वहीं घुसपैठ के खिलाफ लड़ाई में सैनिकों के लिए ‘गद्दी’ कुत्ते अमूल्य हैं. उन्होंने कहा, ‘‘वे थोड़ी सी भी हरकत को पकड़ लेते हैं. कोई हलचल होने पर वे सूंघ सकते हैं या सुन सकते हैं. वे तुरंत चेतावनी देते हैं और सैनिकों को सतर्क करते हैं.’’

रणनीतिक कारणों (strategic reasons) से इस अधिकारी के नाम का खुलासा नहीं कर सकते. इस अधिकारी ने कहा कि कुत्ते की यह नस्ल सैनिकों की आंख और कान है और एक परिवार की तरह उनके साथ रहती है. उन्होंने कहा कि ये कुत्ते सैनिकों के साथ काम करते हैं और व्यावहारिक रूप से परिवार का हिस्सा हैं, वे सैनिकों के सबसे अच्छे दोस्त हैं.

कुत्ते सर्दियों के दौरान भी चौकियों पर सैनिकों के साथ रहते हैं, जब ज्यादातर जगहों पर लगभग 20 फुट मोटी बर्फ के साथ मौसम बहुत कठोर होता है. एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कुत्ते बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के हैं, लेकिन उनकी क्षमताएं बेजोड़ हैं.

अधिकारी ने कहा, “वे ठीक से प्रशिक्षित नहीं हैं, लेकिन वे चौकियों पर सैनिकों के साथ रहते हैं. वे आसपास के लोगों और होने वाली गतिविधियों से पूरी तरह वाकिफ हैं. वे किसी को भी महसूस कर सकते हैं जो वहां नहीं होना चाहिए. वे सैनिकों और स्थानीय नागरिकों को पहचानते हैं और जब भी अजनबियों की आवाजाही होती है, तो भौंकना शुरू कर देते हैं.”

घुसपैठ विरोधी अभियानों (anti infiltration operations) में बलों की सहायता करने के अलावा, वे उन सैनिकों के लिए ‘तनाव-निवारक’ के रूप में भी काम करते हैं जो उनके साथ खेलना पसंद करते हैं. अधिकारी ने कहा, ‘‘वे हमारे मनोरंजन के रूप में भी काम करते हैं, खासकर उन जगहों पर जहां नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है या दुर्लभ है. इस लिहाज से वे हमारे सबसे अच्छे दोस्त हैं.’’

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘गद्दी’ कुत्तों को प्रशिक्षित करना और उनका रखरखाव आसान है, इसलिए इनके पालने पर ज्यादा बड़ी मात्रा में खर्च नहीं होता. उन्होंने कहा, ’’वे शानदार काम करते हैं। वे सतर्क हैं, उनके पास विलक्षण क्षमताएं हैं और वे सबसे अच्छे प्रहरी के रूप में काम करते हैं. ”

Share:

  • अग्निपथः नेपाली गोरखों की भर्ती पर संशय, नेपाल ने बताया त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन

    Fri Sep 9 , 2022
    नई दिल्ली। अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) के जरिए सेना में नेपाली गोरखों (Nepali Gorkhas) की भर्ती को लेकर संशय बरकरार है। हालांकि, भारत (India) की तरफ से नेपाल (Nepal) को बताया जा चुका है कि नई योजना में पहले की ही तरह गोरखों की भर्ती जारी रहेगी। लेकिन नेपाल ने इसे 1947 में हुए त्रिपक्षीय […]
    सम्बंधित ख़बरें
    लेटेस्ट
    खरी-खरी
    का राशिफल
    जीवनशैली
    मनोरंजन
    अभी-अभी
  • Archives

  • ©2025 Agnibaan , All Rights Reserved