
- 800 गाडिय़ां इकट्ठा करती है घरों-दुकानों का कचरा
- इंदौर को कचरा अलग करने में है महारथ हासिल
- 1200 टन से ज्यादा कचरे का होता है रोजाना निपटान
- 250 करोड़ से ज्यादा सालाना खर्च भी
- सूरत, अहमदाबाद सहित अन्य शहर कचरा कलेक्शन में भी फिसड्डी
इंदौर। स्वच्छता (Cleanliness) में इंदौर (Indore) का डंका आठवीं बार भले ही बज गया हो, मगर जमीनी हकीकत (Ground Reality) यह है कि शहर की जनता ही मौजूदा सफाई व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है और अभी सोशल मीडिया (Social Media) पर इस संबंध में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई भी। दरअसल, झाड़ू तो इंदौर की नकल करते हुए अन्य शहरों ने भी लगाना शुरू कर दी, मगर कचरा सेग्रिगेशन (Garbage Segregation) और उसके निपटान के जो संयंत्र इंदौर ने स्थापित कर रखे हैं, उसकी बदौलत ही बीते तीन-चार सालों से इंदौर स्वच्छता में सिरमौर बना हुआ है। गत वर्ष इंदौर के साथ नम्बर वन आए सूरत और इस बार के स्वच्छता सर्वेक्षण में पहले स्थान पर घोषित अहमदाबाद में भी अभी कचरा संग्रहण से लेकर उसे अलग करने और फिर उसके निष्पादन का वैसा सिस्टम नहीं है, जो इंदौर ने सात साल पहले ही खड़ा कर दिया था। बीते सालभर से तो इंदौर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चौपट थी, जो अभी सर्वेक्षण के वक्त थोड़ी बेहतर हुई और अब फिर शहर के तमाम क्षेत्रों में कचरे और गंदगी के ढेर नजर आने भी लगे हैं।
वर्ष 2016-17 में इंदौर ने स्वच्छता की जो मजबूत नींव डाली, उसी की बदौलत स्वच्छता की इमारत खड़ी हुई, जिसमें कचरे से सीएनजी बनाने के संयंत्र के साथ-साथ जो कचरा संग्रहण और 6 तरह के कचरे को अलग-अलग करने की प्रक्रिया भी शामिल है। शहर की जनता खुद गीला और सूखा कचरा अलग-अलग सौंपती है और उसके अलावा प्लास्टिक, सेनेजरी वेस्ट, ई-वेस्ट को भी अलग-अलग किया जाता है। निगम की 800 कचरा गाडिय़ां, घरों, दुकानों, दफ्तरों से सुबह-शाम कचरा एकत्रित करती हंै और फिर उस कचरे को अलग-अलग बनाए गए सेंटरों में लाया जाता है और फिर उसे अलग-अलग करते हैं। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर बड़ा सीएनजी संयंत्र भी लगाया गया, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया और उसके बाद केन्द्रीय बजट में भी उसकी प्रशंसा की गई। इतना ही नहीं, नेफ्रा को भी जो प्रोजेक्ट सौंपा गया, जिस पर कीचड़ उछालने के प्रयास भी निगम के कर्ताधर्ताओं ने कुछ समय पूर्व किए और इसे घोटाला बताते हुए जांच तक करने की मांग भी की। मगर उसमें भी कुछ नहीं निकला और उसी की बदौलत इंदौर स्वच्छता में नम्बर वन आता रहा और शिकायत करने वाले निगम के कर्ताधर्ता अब साफा बंधवाकर ढोल-ढमाके के साथ उसका श्रेय लेने में जुटे हैं। तत्कालीन निगमायुक्त मनीष सिंह ने कचरा प्रबंधन का जो सिस्टम खड़ा किया, उसे बाद में आयुक्त बने आशीष सिंह और फिर प्रतिभा पाल ने भी जारी रखा। यही कारण है कि इंदौर को सबसे अधिक अंक कचरा प्रबंधन के कारण मिलते रहे और 7 बार तो वह स्वच्छता सर्वेक्षण में नम्बर वन रहा और अभी आठवीं बार स्वच्छ सुपर लीग में भी सिरमौर साबित हुआ। हालांकि यह भी सच है कि इंदौर की जिस जनता ने शहर को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान दिया उस जनता की भी अब स्पष्ट राय है कि शहर की सफाई व्यवस्था पहले जैसी नहीं रही और उसका प्रमाण यह भी है कि अभी सुपर लीग में नम्बर वन आने के बाद भी इस तरह की प्रतिक्रिया जनता-जनार्दन ने बेबाकी से दी है। बावजूद इसके नगर निगम के सफाईकर्मियों की यह मेहनत है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने शहर को स्वच्छ बनाए रखने में उन्होंने हरसंभव योगदान दिया है, वहीं तारीफ करना होगी, अपर आयुक्त अभिलाष मिश्रा की, जिन्हें स्वच्छता सर्वेक्षण के पहले महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा ने सफाई की बागडोर सौंपी और मिश्रा ने जमकर मेहनत की और उसी का परिणाम है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर का परफॉर्मेंस बेहतर रहा और शहर की जो सफाई व्यवस्था पटरी से उतर गई थी उसे काफी हद तक सुधारने में वे सफल भी रहे, अन्यथा जनता के साथ-साथ निगम के ही अधिकारियों-कर्मचारियों ने मान लिया था कि इस बार इंदौर नम्बर वन की पोजिशन पर नहीं रहेगा। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार ने भी बड़ी होशियारी से इंदौर को सर्वेक्षण से बाहर किया और सुपर लीग बनाकर 23 शहरों के साथ उसे जोड़ा और उसके परिणाम में नम्बर वन बताया। हालांकि अंकों का खुलासा नहीं किया गया, लेकिन जो प्रतिशत सामने आए उसमें इंदौर सिर्फ सोर्स सेग्रिगेशन में ही 98 प्रतिशत रहा, बाकी सभी मापदण्डों पर उसे 100 फीसदी तक अंक मिले हैं।