काठमांडू। नेपाल (Nepal) आज अपनी लोकतांत्रिक (Temocratic) पहचान की तलाश कर रहा है, कभी राजशाही शानो-शौकत (The royal splendor) से चलता था. अगर नेपाल के इतिहास को उठाकर देखें तो यहां राजशाही परंपरा (Monarchical tradition) का अंत किसी क्राइम थ्रिलर से कम नहीं है. नेपाल की राजशाही परंपरा करीब 250 सालों तक शाह वंश के अधीन रही.
इसकी शुरुआत 1768 में पृथ्वी नारायण शाह ने गोरखा से की, जिन्होंने काठमांडू घाटी के छोटे राज्यों को जीतकर नेपाल को एकीकृत किया. शाह राजा हिंदू धर्म के संरक्षक माने जाते थे और भगवान विष्णु के अवतार कहलाते थे. 19वीं सदी में, 1846 के कोत पर्व के बाद जंग बहादुर राणा ने सत्ता हथिया ली. राणा शासन (1846-1951) में राजा नाममात्र के थे, जबकि राणा प्रधानमंत्रियों ने निरंकुश शासन चलाया.
काठमांडू के नारायणहिती पैलेस में साप्ताहित शाही भोज चल रहा था. तभी अचानक सैनिक वर्दी पहन हाथों में बंदूकें लिए क्राउन प्रिंस दीपेंद्र शाह आए और अपने ही परिवार पर गोलियां बरसा दी. इस नरसंहार में बीरेंद्र वीर विक्रम शाह, रानी ऐश्वर्या, बेटा निरंजन, बेटी श्रुति और परिवार के अन्य 7 सदस्य मारे गए. उसके बाद दीपेंद्र ने खुद को भी गोली मार ली.
जनआंदोलन ने किया नेपाल की राजशाही का अंत
इसके बाद ज्ञानेन्द्र राजा बने, लेकिन उनकी अलोकप्रियता ज्यादा थी. 2005 में ज्ञानेन्द्र ने प्रत्यक्ष शासन लागू किया, जिससे जनता और राजनीतिक दलों में असंतोष भड़क उठा. 2006 का दूसरा जनआंदोलन नेपाल में राजशाही के अंत का कारण बना. सात दलीय गठबंधन और माओवादियों के बीच 12-सूत्री समझौता हुआ. लाखों लोग सड़कों पर उतरे, जिसके दबाव में ज्ञानेन्द्र ने संसद बहाल की.
नवंबर 2006 में शांति समझौते ने माओवादी विद्रोह समाप्त किया. जनवरी 2007 में अंतरिम संविधान ने राजा की शक्तियां निलंबित कीं और आखिर में अप्रैल 2008 के संविधान सभा चुनाव में माओवादियों को बहुमत मिला.
राम बरन यादव बने लोकतांत्रिक नेपाल के पहले राष्ट्रपति
28 मई 2008 को सभा ने 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर नेपाल को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया. ज्ञानेन्द्र को नारायणहिटी पैलेस छोड़ना पड़ा, जो अब संग्रहालय है. उसके बाद राम बरन यादव नेपाल के पहले राष्ट्रपति बने. देखा जाए तो हाल के वर्षों में आर्थिक संकट के बीच राजशाही बहाली की मांग उठी है.
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