
बहुत याद आता है… आपका
यूं चले जाना…
संघर्ष और हर्ष की याद को छोडक़र
आपका यूं चले जाना…
जीवन का विश्वास दिलाकर यकायक
आपका यूं चले जाना…
जग को अपने होने का अहसास कराकर
आपका यूं चले जाना…
महफिलों को मायूस… गुमनाम बनाकर
आपका यूं चले जाना…
उंगली पकडक़र चलाना और हाथ छोडक़र आपका यूं चले जाना…
चंद लम्हे ही तो गुजारे थे जिंदगी के साथ
और जुदाई की तन्हाई में छोडक़र
आपका यूं चले जाना…
यादों की तन्हा कशिश में जमाने को छोडक़र, अपनों का इतना लंबा कारवां जोडक़र आपका यूं चले जाना…
अग्निबाण में आत्मा परोसकर
भावनाओं को शब्दों में पाल-पोसकर आपका यूं चले जाना…
कि लौट आओ कि आपकी इमारत बुलंद हो चुकी है… अग्निबाण की नन्ही पौध अब वटवृक्ष बन चुकी है…
बुलंदी की जो कसम आपने खाई थी वो पूरी हो चुकी है…
अपने पेड़ की छाया में कुछ वक्त बिताने अब तो चले आओ…
यादों में कब तक सफर करोगे… हकीकत में रूबरू होने अब तो चले आओ… अब तो चले आओ…
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