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घर में खोल लिया हरिओम मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल

October 04, 2025

  • पार्किंग व्यवस्था ऐसी कि दोपहिया वाहन भी खड़े नहीं हो पाते

जबलपुर। आपके पास पैसा, नेताओं की एप्रोच और अधिकारियों का साथ है तो आप किसी की जान लेने का ठेका ले सकते हो। सबसे खास बात ये है कि किसी की जान लेने में आपको कोई अपराध भी नहीं लगेगा क्योंकि आपने रास्ता ही ऐसा चुना है। बात हो रही धनवंतरी रोड़ गढ़ा पुरवा में स्थित हरिओम मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की जो एक घर में संचालित हो रहा है। अस्पताल में व्यवस्थाओं के क्या हाल हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोपाहिया वाहन खड़े करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। अस्पताल में बेड तो बहुत हैं लेकिन बाहर जाने का रास्ता एक ही अगर कोई अग्निहादसा हो जाए तो एक भी मरीज जिंदा बाहर नहीं आ सकता है। अस्पताल संचालन का ठेके देने के पहले स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के अधिकारियों ने यह भी नहीं देखा कि उनकी एक गलती से कई लोगों की जान जा सकती है।

सुरक्षा मानकों का पालन नहीं
शहर में स्वास्थ्य सेवाओं का दावा करने वाले निजी अस्पतालों की हकीकत अब लोगों के सामने आ रही है। धनवंतरी रोड गढ़ा पुरवा क्षेत्र में संचालित हरिओम मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल इसका ताज़ा उदाहरण है। यह अस्पताल एक साधारण घर में खोला गया है, जहाँ न तो सुरक्षा मानकों का पालन किया गया है और न ही मरीजों की सुविधा का ख्याल रखा गया है। सबसे बड़ी समस्या अस्पताल की लोकेशन और संरचना को लेकर है। भवन इतना छोटा है कि बाहर दोपहिया वाहन तक खड़े करने की व्यवस्था नहीं है। चार पहिया वाहन खड़ा करना तो दूर, इमरजेंसी के समय एंबुलेंस तक का प्रवेश असंभव प्रतीत होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आपात स्थिति में मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाना कितना कठिन हो सकता है।

अग्नि हादसा होता है तो कई जानें जाएंगी
अस्पताल के अंदर बेड की संख्या तो अधिक है, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता सिर्फ एक है। यानी यदि किसी तरह की आगजनी या आपदा हो जाए, तो अस्पताल में भर्ती मरीजों का बाहर निकलना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पताल भवन में एक से अधिक आपात द्वार होना आवश्यक है, ताकि मरीजों और स्टाफ की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। स्थानीय नागरिकों ने बताया कि अस्पताल खुलने के समय स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के अधिकारियों ने कोई सख्त जांच नहीं की। परमिशन देने से पहले यह नहीं देखा गया कि इस इमारत की संरचना अस्पताल संचालन के लिए उपयुक्त है या नहीं। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या राजनीतिक दबाव और पैसों की ताकत के कारण नियमों की अनदेखी की गई?


जिम्मेदारों को सब मालूम फिर भी चुप्पी
यह घटना उस कड़वे सच को उजागर करती है कि जब जिम्मेदार विभाग ही अपने कर्तव्यों की अनदेखी करें तो लोगों की सुरक्षा दांव पर लग जाती है। हरिओम मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का मामला प्रशासन के लिए एक टेस्ट केस बन चुका है। अब देखना यह है कि नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग इस पर क्या कदम उठाते हैं और क्या वास्तव में मरीजों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।

अस्पताल खुद बना जान का दुश्मन
एक स्थानीय निवासी ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अस्पताल में इलाज कराने आने वाले लोग अपनी जान बचाने आते हैं, लेकिन यहाँ की स्थिति ऐसी है कि खुद अस्पताल ही खतरा बन चुका है। बाहर निकलने का कोई सुरक्षित रास्ता नहीं है। अगर कोई हादसा हो गया तो मरीजों और परिजनों को बचाना मुश्किल होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अस्पताल चलाने के लिए सिर्फ डॉक्टर और बेड होना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर, पार्किंग, एंबुलेंस की आवाजाही, आग से सुरक्षा और निकासी मार्ग जैसी सुविधाएँ होना अनिवार्य है। यदि ये व्यवस्थाएँ पूरी नहीं हैं, तो अस्पताल चलाना न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि मरीजों की जान से खिलवाड़ भी है।निवासियों का कहना है कि नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग को तुरंत जांच करनी चाहिए और अस्पताल को संचालन की अनुमति कैसे मिली, इसकी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए। साथ ही, अगर सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया है तो अस्पताल पर रोक लगाई जानी चाहिए।

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