
नई दिल्ली। देश (Country) में लगे आपातकाल (Emergency) को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। ‘द इमरजेंसी डायरीज’ किताब (Book) के विमोचन (Release) से पहले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा (HD Deve Gowda) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) दोनों ने उस दौर की घटनाओं और लोकतंत्र (Democracy) की अहमियत को याद किया। देवगौड़ा ने आपातकाल को भारत (India) के लोकतांत्रिक अस्तित्व पर सबसे गंभीर हमला करार दिया।
पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने इस किताब की भूमिका लिखते हुए कहा कि भारत के गणराज्य के शुरुआती वर्षों को लोकतंत्र को बचाने की जद्दोजहद के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि 1975 में लगाए गए आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा दिया था। ऐसे में ज़रूरी है कि देश का युवा उस समय की सच्चाई से अवगत हो और समझे कि लोकतंत्र और संविधान को बचाना कितना महत्वपूर्ण है।
देवगौड़ा ने ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की तारीफ करते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस दौर में निभाई गई भूमिका को सामने लाने का सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि खुद भी बतौर विपक्ष के नेता कर्नाटक में उन्होंने आपातकाल का विरोध किया था और जेल गए थे। लेकिन इस गिरफ्तारी ने उनका हौसला नहीं तोड़ा, बल्कि अलग-अलग विचारों और उम्र के नेताओं से जुड़ने और सीखने का अवसर दिया।
देवगौड़ा ने कहा कि उस दौर में लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई स्वत:स्फूर्त तरीके से खड़ी हुई। अगर वह आंदोलन न होता, तो आज का भारत शायद किसी और ही रूप में होता। उन्होंने बताया कि मोदी जैसे युवा, जो उस वक्त आरएसएस के प्रचारक थे, उन्होंने जमीनी स्तर पर कम्युनिकेशन और प्रतिरोध का सशक्त नेटवर्क तैयार किया। इससे लोकतंत्र विरोधी ताकतों के खिलाफ प्रभावशाली मोर्चा खड़ा हुआ।
आपातकाल की 50वीं बरसी पर देवगौड़ा ने जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी समेत उन तमाम नेताओं को याद किया जिन्होंने लोकतंत्र के लिए अपनी आज़ादी और यहां तक कि जीवन दांव पर लगा दिया। उन्होंने कहा कि इस संघर्ष ने भारत के भविष्य की दिशा तय की। साथ ही यह भी साझा किया कि जेल में रहने के दौरान उनके पिता का निधन हो गया था, क्योंकि उन्हें डर था कि बेटा कभी वापस नहीं आएगा।
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