
नई दिल्ली. ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) अब सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि इसका असर अब धरातल पर दिखाई देने लगा है. यूरोप (Europe) और अमेरिका (America) इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से जूझ रहे हैं. लंदन (London) में गुरुवार को तापमान 32.2 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो इस साल का अब तक का सबसे गर्म दिन रहा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में तापमान 40°C तक भी जा सकता है.
यूरोप के कई हिस्सों में तापमान सामान्य से 15°C अधिक दर्ज किया जा रहा है. स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, इटली, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में लू का असर तेज हो रहा है. इसकी एक प्रमुख वजह ओमेगा (Ω) ब्लॉकिंग है – एक ऐसी जलवायु स्थिति जिसमें उच्च दबाव प्रणाली दो निम्न दबाव क्षेत्रों से घिर जाती है. इससे मौसम की धाराएं स्थिर हो जाती हैं और लंबे समय तक गर्मी बनी रहती है.
इस वर्ष यह पैटर्न पश्चिमी और मध्य यूरोप में बना हुआ है, जिससे इबेरिया में तापमान 40°C पार कर गया, फ्रांस में उच्च 30°C और अन्य क्षेत्रों में भीषण गर्मी दर्ज की जा रही है.
अमेरिका भी झेल रहा है असामान्य गर्मी
अमेरिका में भी इस जून में असामान्य मौसम देखने को मिल रहा है. सीएटल से लेकर टेक्सास, मिनेसोटा और न्यू मैक्सिको तक, हीटवेव जैसी स्थितियां बन रही हैं. अमेरिका की राष्ट्रीय मौसम सेवा (NWS) ने शुक्रवार से हीटवेव अलर्ट जारी किया है. एजेंसी के अनुसार, मध्य-पश्चिम और ग्रेट लेक्स क्षेत्र के बाद यह गर्मी ओहायो घाटी और ईस्ट कोस्ट तक फैलने की आशंका है.
कमज़ोर और भटकी हुई जेट स्ट्रीम: उत्तरी अटलांटिक की जेट स्ट्रीम कमजोर होने से गर्म हवाएं दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ रही हैं, जिससे गर्मी का असर अमेरिका के मध्य और उत्तर-पूर्वी हिस्सों तक पहुंच रहा है. समुद्री सतह का बढ़ा तापमान (SSTs): यूरोपीय तटों के आसपास अटलांटिक महासागर की सतह सामान्य से अधिक गर्म है. इससे नमी और सतही तापमान बढ़ता है.
जलवायु परिवर्तन बना मुख्य कारण
गर्मी की इन घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है. रिसर्च के अनुसार, मानवजनित गतिविधियों के चलते हीटवेव की आवृत्ति, अवधि और तीव्रता में बढ़ोतरी हो रही है. पिछले 10 में से 7 साल अमेरिका के सबसे गर्म सालों में शामिल रहे हैं. शहरी इलाकों में ‘हीट आइलैंड’ प्रभाव भी तापमान बढ़ा रहा है.
स्पेन में इस साल 30 मई को ही तापमान 42°C तक पहुंच गया, जो दर्शाता है कि हीटवेव पहले और ज़्यादा गंभीर हो रही हैं. इसके साथ ही, दुनिया के 83.7% कोरल रीफ ग्लोबल ब्लीचिंग से प्रभावित हैं और समुद्री इकोसिस्टम में बदलाव आ रहे हैं.
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