
उद्योगों को देने के लिए भी ली जा रही जमीनों का किसान संगठनों ने किया विरोध, रेलवे लाइन के साथ इंडस्ट्रियल कॉरिडोर सहित अन्य योजनाओं के लिए अधिगृहीत की जा रही हैं हजारों एकड़ जमीनें
इंदौर। उद्योगों को जमीनों का आवंटन करने के लिए इंदौर (Indore) सहित प्रदेशभर में औद्योगिक लैंड बैंक तैयार किए जा रहे हैं, जिसके चलते सैकड़ों एकड़ जमीनों का अधिग्रहण हो रहा है। इंदौर-पीथमपुर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (Indore-Pithampur Industrial Corridor) के साथ ही सेक्टर-7 को भी विकसित किया जा रहा है तो दूसरी तरफ इंदौर-बुधनी रेलवे लाइन के लिए भी कुछ समय पूर्व भू-अर्जन अवॉर्ड पारित किया गया, जिसके आधार पर किसानों को मुआवजा राशि हासिल करने के नोटिस भिजवाए जा रहे हैं।
इसी तरह अभी पश्चिमी रिंग रोड, यानी नए बायपास के लिए भी जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है, जिसके चलते जमीनों का अधिग्रहण शुरू होगा और उसका भी किसानों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि 2 करोड़ रुपए बीघा जमीन का वर्तमान बाजार भाव है। मगर चूंकि कलेक्टर गाइडलाइन कम है, उसके चलते 9 लाख रुपए तक का ही मुआवजा किसानों के हाथ आएगा। वहीं दूसरी तरफ किसानों का यह भी आरोप है कि उनके खेतों से हाईटेंशन लाइनें निकाल दी गईं, जिसके चलते भी अब जमीन कोई खरीदने को तैयार नहीं है। वैसे तो नए भूमि अधिग्रहण कानून में 2 से 4 गुना तक मुआवजे का प्रावधान है, मगर रेलवे, एनएचआई सहित कई विभागों ने अपने-अपने स्तर पर मुआवजा देने की नीतियां बना ली हैं, जिसके चलते अभी इंदौर-बुधनी रेलवे लाइन के लिए जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है और किसानों को मुआवजा राशि के नोटिस भी अनुविभागीय अधिकारी सांवेर द्वारा जारी किए गए हैं। दरअसल कदवालीखुर्द, बीसाखेड़ी, पीपल्या, कलमा जगमाल सहित कई गांवों की जमीन इस रेलवे लाइन के लिए अधिगृहीत की जा रही है। पूर्व जनपद सदस्य और किसान नेता हंसराज मंडलोई का आरोप है कि ढाई से तीन करोड़ रुपए बीघा की बेशकीमती जमीन मात्र 27 लाख रुपए बीघा में रेलवे द्वारा ली जा रही है। इसी तरह अभी पश्चिमी रिंग रोड के लिए भी 39 गांवों की जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया जा रहा है, जिसमें इंदौर और धार के किसानों की 1600 एकड़ जमीन अधिगृहीत की जाना है। किसानों का कहना है कि शासन ऐसी नीति बनाए, जिससे अन्नदाता खुशी-खुशी अपनी जमीन दे सकें। एक किसान प्रहलाद डाबी का कहना है कि उसकी जमीन पश्चिमी रिंग रोड में जा रही है और उनके गांव में जमीन का भाव अभी डेढ़ से दो करोड़ रुपए बीघा है, लेकिन चूंकि गाइडलाइन कम है, लिहाजा उसे मात्र 9 लाख रुपए बीघा के हिसाब से ही मुआवजा मिलेगा। यही पीड़ा मांगलिया हरनिया के किसान कैलाश चौधरी, ग्राम धतुरिया के दीपक सांखला सहित अन्य की है। इन सभी किसानों का कहना है कि उनकी करोड़ों रुपए मूल्य की जमीनें सरकार कौडिय़ों के भाव ले रही है। इतना ही नहीं, चूंकि चारों तरफ टाउनशिप, उद्योग सहित अन्य गतिविधियां आ रही हैं, उसके चलते जगह-जगह विद्युत ग्रिड बन रही है और हाईटेंशन लाइन का जाल भी बिछाया जा रहा है। ये हाईटेंशन लाइनें किसानों के खेतों में से गुजरती हैं और बड़े-बड़े खंभों का जाल बिछाया जाता है, जिसके चलते किसानों की करोड़ों रुपए की जमीनें भी बेकार हो जाती हैं और हाईटेंशन लाइन के आसपास की जमीनें बिकती नहीं हैं, क्योंकि उस पर किसी भी विभाग से अनुमति नहीं मिलती है।
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