
नई दिल्ली: लोकसभा (Lok Sabha) में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान जनता दल यूनाइटेड (JDU) के ललन सिंह द्वारा कांग्रेस (Congress) और विपक्ष पर किए गए हमलों का राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने करारा जवाब दिया है. आरजेडी सांसद अभय कुमार सिन्हा (Abhay Kumar Sinha) ने सदन में मोर्चा संभालते हुए न केवल ईवीएम (EVM) की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए, बल्कि एनडीए के ‘परिवारवाद’ और ‘सुशासन’ के दावों की भी पोल खोल दी. सिन्हा ने सत्ता पक्ष को खुली चुनौती देते हुए कहा कि अगर उन्हें अपनी लोकप्रियता पर इतना ही भरोसा है, तो ईवीएम हटाकर बैलट पेपर से चुनाव करा लें, असली ‘हैसियत’ पता चल जाएगी.
ललन सिंह द्वारा विपक्ष पर परिवारवाद का आरोप लगाने पर पलटवार करते हुए अभय सिन्हा ने एनडीए के भीतर चल रही ‘रिश्तेदारी की राजनीति’ का कच्चा चिट्ठा खोल दिया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “ललन सिंह जी अभी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे, लेकिन हमने अभी हाल के चुनावों में देखा है कि आपके गठबंधन में टिकट कैसे बंटे. एक पति अपनी पत्नी को सिंबल दे रहा था, एक ससुर अपनी बहू को टिकट थमा रहा था. कहीं समधी अपनी समधन को तो कहीं मामा अपने भांजे को उम्मीदवार बना रहा था. उन्होंने मंत्रिमंडल गठन पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “लोकतंत्र की दुहाई देने वाले यह बताएं कि एक व्यक्ति बिना किसी सदन का सदस्य हुए मंत्री पद की शपथ कैसे ले रहा था? क्या यह नैतिकता है?”
बिहार में ‘जंगलराज’ के बार-बार इस्तेमाल किए जाने वाले जुमले पर आरजेडी सांसद ने सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा, आप (एनडीए) बिहार में पिछले 20 सालों से सत्ता में हैं. दो दशक राज करने के बाद भी अगर आप आज भी ‘जंगलराज-जंगलराज’ चिल्ला रहे हैं, तो यह आपकी नाकामी का सबसे बड़ा सबूत है. अपनी कमियों को छिपाने के लिए विपक्ष के पुराने इतिहास को कोसना अब बंद कीजिए.
अभय सिन्हा ने समस्तीपुर की घटना का जिक्र करते हुए चुनाव आयोग की निष्पक्षता को कटघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा, समस्तीपुर में वीवीपैट (VVPAT) की पर्चियां लावारिस हालत में सड़क किनारे पड़ी मिलीं. जब हंगामा हुआ तो चुनाव आयोग ने सफाई दी कि यह ‘मॉक पोल’ की पर्चियां थीं. मेरा सीधा सवाल है- अगर वे पर्चियां महज मॉक पोल की थीं और कोई गड़बड़ी नहीं थी, तो फिर संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों की गई? अधिकारियों को सस्पेंड करना यह साबित करता है कि दाल में कुछ काला था और पारदर्शिता संदिग्ध है.
चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का एक बड़ा आरोप लगाते हुए सिन्हा ने कहा कि यह चुनाव निष्पक्ष नहीं था, बल्कि सरकारी इंतजाम से वोट खरीदने की साजिश थी. उन्होंने सदन को बताया, 6 अक्टूबर को आचार संहिता लागू हो चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद चुनाव के बीचों-बीच सरकार ने महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये की राशि तीन किस्तों में भेजी. क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं था? क्या चुनाव आयोग को यह दिखाई नहीं दिया, या फिर उन्हें ‘न देखने’ की अनुमति नहीं थी? उन्होंने आरोप लगाया कि जमीनी स्तर पर काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं को ब्लैकमेल किया गया. उनसे कहा गया कि फंड और मानदेय तभी मिलेगा, जब वे एक ‘विशेष दल’ का साथ देंगी.
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