(नम्रता कचोलिया) कोरोना के कारण रुकी ज़िंदगी कई मायनो में बेरंग हुई है अब चाहे ,त्योहारों के समय बाज़ार में नज़र आती चल पहल हो या निरंतर चलते जीवन में लगा अल्प विराम दोनो के ही कारण व्यक्ति व्यथित हुआ है ।
ऐसे में अब होली आते ही कोरोना के कारण इस साल रंगो भरी पिचकारियों की रौनक़ में अलग ही फीकापन महसूस हो रहा है जिसमें एक ओर होली ना मना पाने का ग़म है तो दूसरी ओर इस कोरोना की अनिश्चित्तता ।
तो फिर आख़िर इस साल कैसे होली मनायी जाए जो मन में इस बात का मलाल ना रहे की एक साल ऐसा भी आया था जब पूरा देश अपने किसी देशव्यापी पर्व को खुलकर मना नहीं पाया था ।
रंग होली के हो या ख़ुशियों के किसी भी वजह से बस चेहरे मुस्कुरा दे तो ऐसे त्योहार हर रोज़ मनाए जा सकते है।
• इस होली को संकल्प ले कि रंग जैसे हर साल होली पर दूसरों को लगाते है उस तरह इस साल दूसरों के जीवन में ख़ुशियों के रंग भर दे ,यदि किसी रिश्ते को लेकर दिल में कोई बेर हो तो उसमें आप आगे बढ़कर उस बेर को ख़त्म करने की कोशिश करे और क्यूँकि सब ठीक करने के ऐसे मौक़े और इतना समय फिर दोबारा नहीं मिल पाएगा ।
• देखा जाए तो बड़े हो जाने के बाद हर साल हम सब होली के त्योहार को थोड़ा बहुत परिवार के साथ मनाने के बाद अपने दोस्तों के साथ मनाना ज़्यादा पसंद करते है तो ऐसे में इस साल अपने परिवार के साथ घरेलू स्तर पर एक दूसरे को गुलाल लगाकर और स्वादिष्ट पकवान बनाकर इसको मनाए इससे पारिवारिक स्तर पर नज़दीकियाँ बनी रहती है।
• होलिका दहन नहीं कर पा रहे है तो ना सही पर अपने मन के भीतर बैठी बुराइयों का दहन करके भी इस परम्परा को निभा ले ।वैसे भी समय और परिस्थितिया अभी बाहर के नहीं अपने भीतर के सुधार के लिए निर्मित हुई है जिसका भरपूर उपयोग करे।
• होली एक दिन की होती है पर संदेश पूरे ३६४ दिनो के लिए देती है कि इस एक दिन के रंगो की तरह ही आपका पूरा जीवन ख़ुशियों से रंगीन हो और जैसे रंगो में भी कुछ रंग चमकदार होते है तो रंग कुछ गहरे होते है ,बस यही जीवन है चमकदार रंगो की तरह कभी ख़ुशी है तो गहरे रंगो की तरह कभी ग़म पर वास्तव में ज़िंदगी तो ज़िंदगी है जब जैसे रंगो से भरनी हो उस तरफ़ अपने आप को अग्रसर कर लो ।
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