
इंदौर, राजेश ज्वेल। प्राधिकरण की योजनाओं में शामिल जमीनों को छोडऩे का खेल बड़ा पुराना है, जिसकी चपेट में दो मंत्री और कई अफसर भी आ चुके हैं, तो लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में भी जांचें चलती रही हैं। ताजा विवाद प्राधिकरण की कई योजनाओं में शामिल जमीनों को डिनोटिफिकेशन किए जाने के प्रस्ताव से जुड़ा है। पिछले दिनों प्राधिकरण ने अपनी कुछ योजनाओं को डिनोटिफाइड करने की अनुमति शासन से मांगी, जिसके जवाब में अपर मुख्य सचिव ने 5 पेज का जो पत्र भिजवाया, उससे खलबली मच गई है। इस पत्र में स्पष्ट कहा गया कि मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 में योजनाओं की जमीनों के डिनोटिफिकेशन का कोई प्रावधान ही नहीं है। इतना ही नहीं, शासन ने योजना 97 में शामिल एक हजार एकड़ जमीन में से जो 500 एकड़ जमीन पूर्व के वर्षों में छोड़ी, उसकी भी जांच कराने का निर्णय लिया, जिसके चलते संचालक नगर तथा ग्राम निवेश ने दो सदस्यों की जांच कमेटी गठित कर दी। अपर मुख्य सचिव ने अपने आदेश में तीन माह की समयसीमा जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की तय की है। पिछले दिनों अग्र्रिबाण ने योजना में हुए भू-घोटालों को सिलसिलेवार उजागर किया था, जिसके चलते शासन ने उक्त आदेश जारी किया है। योजना 97 के कारण ही अपर मुख्य सचिव को इंदौर हाईकोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिका का भी सामना करना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट आदेश पर प्राधिकरण ने जब योजना 97 पार्ट-2 और 4 में शामिल जमीनों का सर्वे शुरू करवाया तो यह तथ्य सामने आया कि 90 एनओसी समय-समय पर जमीन मालिकों को दी गईं, जिसके आधार पर 200 हेक्टेयर, यानी लगभग 500 एकड़ जमीन योजना से मुक्त हो गई और मौके पर अधूरे शॉपिंग मॉल, बहुमंजिला बिल्डिंगें, कॉलोनी सहित कई अन्य निर्माण हो चुके हैंं। पिछले दिनों अग्रिबाण ने सिलसिलेवार ज्योति गृह निर्माण सहित अन्य भूृ-घोटालों को उजागर किया था और उसके पश्चात ही शासन ने उक्त जांच कराने का निर्णय लिया और तत्कालीन अपर मुख्य सचिव नगरीय विकास और आवास संजयकुमार शुक्ल ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी इंदौर विकास प्राधिकरण को उक्त पत्र भिजवाया, जिसमें योजना 97 के अलावा 25 साल या उससे अधिक पुरानी योजना 26 ग्राम सिरपुर, योजना 127 ग्राम पीपल्याराव के अलावा वे योजनाएं, जिनमें 10 प्रतिशत से कम व्यय किया गया, उनमें योजना 161 ग्राम सिरपुर, छोटा बांगड़दा, गाडराखेड़ी व अन्य, योजना 156 ग्राम सिरपुर के अलावा योजना 103 भी शामिल है, जिनमें जमीनें अवॉर्ड से कम की गईं। पिछले दिनों प्राधिकरण ने कई योजनाओं को डिनोटिफाइड करने की अनुमति शासन से मांगी थी और उसके साथ ही योजना 97 के संबंध में भी शासन को जानकारी भेजी गई, जिसमें बताया गया कि प्राधिकरण ने योजना 97 में कुल 428.455 हेक्टेयर जमीन शामिल की थी और उसमें से 200.314 हेक्टेयर, यानी लगभग 500 एकड़ जमीन को मुक्त कर दिया और वर्तमान में 228.141 हेक्टेयर जमीन पर योजना लागू है। बिजलपुर, तेजपुर गड़बड़ी, हुक्माखेड़ी और पीपल्याराव की इन जमीनों पर घोषित योजना का 41 साल बाद भी प्राधिकरण पूर्ण क्रियान्वयन नहीं कर पाया।
दूसरी तरफ मेसर्स सुयश एग्जिम सहित अन्य प्रकरणों में जमीनें मुक्त करने के लिए शासन की अनुमति भी मांगी गई। लिहाजा अब शासन ने यह स्पष्ट पूछा कि प्राधिकरण ने 500 एकड़ जमीन कब, क्यों और किस अधिकारिता से योजना 97 से मुक्त की। क्या इन जमीनों को मुक्त करने के लिए अधिनियम, वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया अथवा नहीं और उक्त कृत्य प्रथम दृष्टया गंभीर प्रतीत होते हैं, जिसके चलते तत्समय के दस्तावेजों के आधार पर जांच जरूरी है। लिहाजा आयुक्त, संचालक नगर तथा ग्राम निवेश को निर्देश दिए जाते हैं कि वे इस मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित करें और कोई भी सदस्य संयुक्त संचालक से निम्न स्तर का न हो और तीन माह में जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। अब शासन के इस आदेश के बाद इंदौर से भोपाल तक खलबली मची है, क्योंकि 500 एकड़ के साथ-साथ अब ऐसी अन्य जमीनें छोडऩे के घोटालों का पिटारा खुल सकता है।
गवली और गजभिये को शामिल किया जांच कमेटी में
इंदौर के नगर तथा ग्राम निवेश दफ्तर में पदस्थ रहे और वर्तमान में भोपाल में संयुक्त संचालक के पद पर हाईकोर्ट आदेश से पदोन्नत हुए काजेसिंह गवली और संचालनालय भोपाल में ही संयुक्त संचालक के रूप में पदस्थ डॉ. अमितकुमार गजभिये को इस दो सदस्यीय जांच कमेटी में शामिल किया गया है। संचालक नगर तथा ग्राम निवेश श्रीकांत बनोठ ने इस जांच आदेश की पुष्टि करते हुए बताया कि अपर मुख्य सचिव के आदेशानुसार दो सदस्यों की जांच कमेटी बना दी है, जो दो माह में अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और फिर उसके आधार पर जांच प्रतिवेदन तैयार कर अपर मुख्य सचिव को भिजवाया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया के लिए अपर मुख्य सचिव ने तीन माह की समयावधि तय की है। वहीं प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार के मुताबिक जांच समिति को सभी चाहे गए दस्तावेजों, रिकॉर्डों की उपलब्धता सुनिश्चित करवाई जाएगी। दूसरी तरफ इस आदेश के बाद अब प्राधिकरण की भू-अर्जन, प्लानिंग और विधि शाखा ने जारी की गई एनओसी सहित अवॉर्ड से कम की गई जमीनों के साथ अन्य रिकॉर्ड खंगालने शुरू कर दिए हैं। जांच समिति में शामिल किए दोनों अधिकारियों के आदेश कल ही संयुक्त संचालक स्थापना विष्णु खरे ने जारी कर दिए हैं।
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