
नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट (bombay high court)ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई(hearing of the case) के दौरान RTI कानून(RTI Act) के गलत इस्तेमाल(abuse ) को लेकर चिंता जाताई है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सूचना के अधिकार जैसे कानूनों का मकसद लोगों की भलाई होती है, लेकिन लोग इसकी बर्बादी करने में जुटे हैं। बुधवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सूचना आयोग (SIC) ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि उन्हें ऐसे ऐसे RTI आवेदन मिलते हैं, जिनका कोई मतलब नहीं होता। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया है।
SIC ने बताया कि उन्हें हाल ही में एक आरटीआई आवेदन मिला है जिसमें पूछा गया है कि एक सरकारी दफ्तर में एक दिन में कितने समोसे परोसे जाते हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि यह मसला गंभीर है। चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की बेंच ने कहा, “कानून भलाई के उद्देश्य से बनाए जाते हैं, लेकिन लोग इसके जरिए दामादों की ढूंढ रहे हैं, सरकारी नौकरी वालों को ढूंढ रहे हैं।
बता दें कि कोर्ट में पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी और पांच आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही थी। इसमें राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त को आवेदनकर्ता द्वारा दूसरी अपील और शिकायत दर्ज कराने के 45 दिनों के भीतर निपटान के लिए रोडमैप देने का निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि CIC ने कोर्ट को बताया कि निपटारे में देरी का कारण सूचना आयुक्तों के खाली पद हैं।
याचिकाकर्ताओं ने लगभग 1 लाख लंबित शिकायतों का हवाला देते हुए राज्य सूचना आयुक्तों के तीन अतिरिक्त पदों को भरने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सरकार में सिर्फ कमी ढूंढ रहे हैं। उन्होंने कहा, “वे हमेशा नकारात्मक रवैये के साथ आते हैं और कभी संतुष्ट नहीं होते।” कोर्ट ने आगे कहा कि आरटीआई अधिनियम में दूसरी अपीलों के लिए कोई समय सीमा नहीं है। उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि SIC इन शिकायतों का जल्द से जल्द निपटारा करेगी।
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