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क्या खाक यातायात की सुरक्षा होगी… दोषी कौन… खुद तय कर लें, 150 चौराहे… मात्र 300 जवान

September 16, 2025

इंदौर। जिस शहर के प्रभारी मंत्री खुद मुख्यमंत्री हों…जिस शहर में दो-दो मंंत्री और सांसद-विधायकों की भरमार हो… जिस शहर में यातायात सबसे बड़ी समस्या हो, उस शहर की हकीकत यह है कि 150 चौराहों के लिए यातायात पुलिस के मात्र 300 जवान चौराहों की सुरक्षा के लिए तैनात होते हैं।

पुलिस कमिश्नरी के बाद इंदौर में यातायात पुलिस को 100 का बल मिला था, लेकिन आधे से ज्यादा वापस ट्रांसफर करवाकर चले गए। इंदौर पुलिस के पास 700 के लगभग का बल है। इनमें से 50 वीआईपी की सुरक्षा में तैनात हैं। 50 से अधिक छुट्टी पर रहते हैं। 50 से अधिक ऑफिस के स्टाफ में तो बड़ी संख्या में पुलिस जवान अधिकारियों की गाड़ी और घर पर तैनात रहते हैं। पुलिस की ड्यूटी भी दो शिफ्ट में होती है। 150 का बल शहर की यातयात व्यवस्था के लिए रहता है। इसके चलते 25 के लगभग चौराहों पर ही पुलिस तैनात रहती है। बाकी के चौराहे भगवान भरोसे रहते हैं।


हत्या से चार गुना अधिक लोगों की हो जाती है सडक़ दुर्घटना में मौत, बढ़ रहा है आंकड़ा
शहर में हर साल 60 के लगभग हत्या की घटनाएं होती हैं, लेकिन इससे चार गुना अधिक लोग शहर में दुर्घटना में मौत के गाल में चले जाते हैं। हर साल सडक़ दुर्घटना में मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। 2020 में शहर में वाहन दुर्घटनाओं में 200 की मौत हुई थी। 2021 में 211, 2022 में 283, 2023 में 257, 2024 में 328 और 2025 के 6 माह में शहर में वाहन दुर्घटनाओं में 136 लोगों की मौत हो चुकी है। आवश्यकता है कि वाहन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एक प्लान बनाकर उस पर काम किया जाए और इसको भी हत्या जैसी गंभीर घटना समझकर इस पर काम किया जाए।

ट्रकों की प्रवेश अवधि में वसूली करते हैं, इसलिए प्रतिबंधित समय में भी ट्रक वाले बेखौफ रहते हैं
इंदौर में ट्रकों का प्रवेश सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक प्रतिबंधित है। इसके बावजूद रात में भी पुलिस के जवान ट्रकों से वसूली करते हैं। यहां तक कि गिट्टी-मुरम लाने वाले ट्रकों ने तो पुलिस जवानों से बंदी बांध रखी है। बाहर से आने वाले ट्रक भी चढ़ावा चढ़ाए बिना शहर में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।पुलिस के यह जवान सौ से लेकर पांच सौ रुपए तक वसूलते हैं और यह बात पुलिस के हर बड़े अधिकारी को मालूम है। इसी कारण ट्रक चलाने वाले अपने आपको बेखौफ मानते हुए चाहे जहां घुस जाते हैं।

शहर में रोजाना दो से तीन वीआईपी, आधा बल लगा रहता है उनके इंतजाम में
शहर में रोजाना दो से तीन वीआईपी रहते हैं। इनमें मंत्री, राज्यपाल, जज और दूसरे राज्यों के मंत्री शामिल हैं। बताते हैं कि आधा उपलब्ध बल इनके इंतजाम में लग जाता है, जबकि अब बड़े शहरों की तरह नई व्यवस्था की आवश्यकता है। बड़े शहरों में वीआईपी के लिए अलग बल होता है, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में वीआईपी आते हैं, जिसके चलते स्थानीय बल पर दबाव नहीं आता है।
मिनी आरटीओ, कमाई वाले पाइंट बिकते हैं
सूत्रों के अनुसार पुलिस का पूरा ध्यान यातायात नियंत्रण में न होकर वसूली में रहता है। बताते हैं कि कमाई वाले पाइंट बिकते हैं। यहां ड्यूटी लगवाने के पैसे मिलते हैं। इसके चलते यातायात विभाग को मिनी आरटीओ भी कहा जाता है। यह वसूली कोई नई नहीं है। पहले जब पुलिस अधिकारियों को मोबाइल के बिल के पैसे नहीं मिलते थे तो यातायात पुलिस पूरे शहर के पुलिस अधिकारियों के मोबाइल के बिल जमा करती थी।

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