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मैं भी विद्यार्थी जीवन से अग्निबाण पढ़ता आया हूं

December 15, 2025

अपने पुरुषार्थ से पहुंचते हैं शून्य से शिखर पर

इंदौर। अग्निबाण (Agni Baan) के शून्य से शिखर सम्मान समारोह (From Zero to Hero Awards Ceremony) पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अग्निबाण ने अपने पुरुषार्थ से हासिल करने वाले लोगों के सम्मान के लिए शून्य से शिखर बड़ा अच्छा नाम रखा है। इस शून्य का प्रताप भी हम महसूस कर सकते हैं। अग्निबाण का नाम भी इतना अद्भुत है, जिसने स्वयं शून्य से शिखर का सफर तय किया है। अग्निबाण के संस्थापक स्व. नरेशचंद्रजी चेलावत (Late Nareshchandraji Chelawat) ने इस कलात्मक जगत की पृथ्वी से कैसे इस नाम को निकाला होगा पता नहीं। अग्निबाण और उज्जैन का संबंध भी मुझे पता है। यह बात सही भी है कि अग्निबाण प्रारंभ से उज्जैन का नंबर वन अखबार है। मैं भी अपने विद्यार्थी जीवन में दोपहर का समय अग्निबाण के लिए रखता था और अग्निबाण अगर हाथ में आ जाए तो सारे समाचारों का संकलन मिल जाता था, क्योंकि इसमें जितने भी बाण लग सकते थे उतने लोकतंत्र की मजबूती के लिए लगा दिए जाते थे। सकारात्मक आलोचना के आधार पर लोकतंत्र की मजबूती के लिए अग्निबाण ने एक बड़ा योगदान दिया है। लोकतंत्र की खूबसूरती इस माध्यम से ही है, क्योंकि हमारे यहां कहा गया है कि निंदक नियरे राखिए आंगनकुटी छबाए, तो हमारे अपनी आलोचना करने वालों को जितना नजदीक रखोगे वो उतने अच्छे प्रकार से हमारे जीवन के मार्ग में आने वाले अवरोध से, चुनौतियों से अलग प्रकार से बचाता है।


दान देने वालों का मान बढ़ाने का संस्कार मां अहिल्या की ही नगरी में
उन्होंने कहा कि यहां पर जितने भी लोगों का सम्मान हुआ अगर मैं नाम लूं तो समय कम पड़ जाए…समारोह में राष्ट्र गौरव से सम्मानित विनोद अग्रवाल के लिए उन्होंने कहा कि दानदाताओं की सूची से लेकर आयकर चुकाने में पूरे देश और प्रदेश में अव्वल विनोद अग्रवाल में भामाशाह नजर आते हैं। विनोदजी को देखकर लगता है कि व्यापार भी करना चाहिए और नंबर वन करना चाहिए और देने का भाव भी ऐसा होना चाहिए कि मालवा नहीं देश को गौरवान्वित करें। उन्होंने कहा कि शहर के दानवीर प्रेम गोयल अपनी विन्रमता, सज्जनता, सरलता और सहजता के साथ अपने स्वभाव के लिए भी जाने जाते हैं। वे च्यवनप्राश से लेकर कंबल बांटने तक सारे काम करते हैं। अग्निबाण ने पुरस्कार के लिए चयन भी सही लोगों का किया है। यह तो मां अहिल्या की नगरी है। दान से ज्यादा मान देने का काम केवल मां अहिल्या ही कर सकती हैं।

इंदौर में माता अहिल्या के संस्कार तो उज्जैन में विक्रमादित्य का न्याय

धन क्षणभंगुर और हाथ का मेल… लेकिन दानदाताओं में ईश्वर नजर आते हैं….

अग्निबाण ने कल ऐसा मंच सजाया, जिसमें धन अर्जित करने से लेकर दान के लिए समर्पित करने वाले दानवीर जहां मौजूद थे, वहीं समाज की पीड़ा को समझने, परखने और हरने वाली हस्तियां भी मौजूद थीं। शून्य से शिखर पर पहुंचे ऐसी भावनाओं के कुबेरों का मान बढ़ाने, उन्हें ऊर्जा देने और उनका सम्मान करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि इंदौर शहर में माता अहिल्या के संस्कार हैं तो उज्जैन में विक्रमादित्य का न्याय। उन्होंने कहा कि धन क्षणभंगुर है, हाथ का मेल है, लेकिन अपने धन का सदुपयोग करते हुए जिन शख्सियतों ने अपनी पहचान बनाई, उनमें हमारे यशस्वी सम्राट विक्रमादित्य का नाम भी आता है।

समारोह में सम्मानित किए गए व्यक्तित्वों का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आज समाज को ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जो शून्य से शिखर तक पहुंचकर भी अपने भीतर सेवा और दान की भावना को जीवित रखे हैं। उन्होंने देश-प्रदेश के अग्रणी दानदाताओं में शामिल श्री विनोद अग्रवाल की सराहना करते हुए कहा कि भामाशाह और कुबेर भले ही हमने नहीं देखे हों, लेकिन ऐसे व्यक्तित्वों को देखकर लगता है कि व्यापार में शिखर पर पहुंचने के साथ-साथ समाज को लौटाने का भाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री ने प्रेमचंदजी गोयल, विजय मेहता सहित अन्य सम्मानित समाजसेवियों की विनम्रता, सरलता और सेवा भाव की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह मां अहिल्या की नगरी है, जहां सत्ता के सुख के साथ-साथ सेवा और दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। केवल दान देना ही नहीं, बल्कि सम्मान देना भी एक महान कार्य है, जिसे मां अहिल्या ने अपने जीवन से सिद्ध किया।

इंदौर और उज्जैन अलग नहीं… एक शरीर तो दूसरा आत्मा…
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री एक कथाकार के रूप में नजर आए। जीवन संबंधी नजरिए पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा शरीर भी दो हिस्सों में बंटा है-एक बाहरी हिस्से में, एक आंतरिक शरीर। बाहरी और आंतरिक शरीर में एक आज्ञा चक्र है, जो इस शरीर के मस्तिष्क में चेतना लाता है। शरीर की चेतना के लिए आत्मा की आवश्यकता होती है और अग्निबाण की चेतना सबको चैतन्य करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इंदौर और उज्जैन अलग नहीं, यह दो शरीर और एक आत्मा हैं। एक आत्मा अग्निबाण बनकर काम कर रही है।

इंदौर की पत्रकारिता बेहद समृद्ध रही
लोकतंत्र के सत्तर साल के इतिहास में समाचार पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। जब पत्रकारिता की बात आती है तो हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी याद आते हैं, क्योंकि वह भी एक पत्रकार थे और उन्होंने भी कई समाचार पत्रों में लिखा है। इंदौर तो इस मामले में और भी सौभाग्यशाली है यहां कि पत्रकारिता भी बहुत समृद्ध रही।

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