
नई दिल्ली । सऊदी अरब(Saudi Arabia) और पाकिस्तान(Pakistan) के बीच हाल ही में एक रक्षा समझौता(defense agreement) हुआ, जिसमें यह तय हुआ कि किसी भी देश पर हमला दोनों देश पर हमला(attack on the country) माना जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर पाकिस्तान पर किसी ने हमला किया तो बचाव या जवाब देने के लिए सऊदी भी पाकिस्तान का साथ देगा। इसके बाद इस बात की चर्चा होने लगी कि अगर भारत हमला करता है तो उस समय में भी सऊदी पाकिस्तान का साथ देगा।
दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन ने इस समझौते को “गेम चेंजर” तो जरूर कहा है, लेकिन उन्होंने भरत पर पड़ने वाले प्रभाव का भी जिक्र किया है। उनके मुताबिक, यह समझौता भारत-सऊदी रिश्तों पर असर नहीं डालेगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच गहरे रणनीतिक और आर्थिक संबंध हैं।
कुगेलमैन ने कहा, “भारत का सऊदी अरब के साथ बेहद करीबी रिश्ता है। सऊदी अरब इस रक्षा समझौते को भारत-सऊदी संबंधों के बीच नहीं आने देगा।” उन्होंने पाकिस्तान से जुड़े आतंकवाद पर भारत की चिंताओं का जिक्र करते हुए कहा कि भविष्य में भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
आपको बता दें कि यह समझौता सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुआ। ठीक उसी समय इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास नेताओं पर सैन्य कार्रवाई की थी। “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट” नामक इस संधि में कहा गया है कि किसी एक देश पर हमला दोनों देशों पर हमले के बराबर माना जाएगा।
पाकिस्तान की नई कूटनीतिक कवायद
कुगेलमैन ने कहा कि पाकिस्तान ने बीते वर्षों में चीन, अमेरिका, तुर्की और अरब खाड़ी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं। लेकिन सऊदी अरब के साथ यह संस्थागत और औपचारिक रक्षा साझेदारी भारत के लिए नई चुनौतियां पेश कर सकती है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने इस रक्षा समझौते पर आधिकारिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा और व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी मजबूत है और नई दिल्ली को उम्मीद है कि सऊदी अरब भी आपसी हितों और संवेदनशीलताओं का ध्यान रखेगा।
कुगेलमैन का निष्कर्ष
विशेषज्ञ के अनुसार, भारत यूरोप, इजरायल, मध्य-पूर्व के अन्य देशों और रूस के साथ अपनी साझेदारियों पर भरोसा कर सकता है। लेकिन अब जब पाकिस्तान को औपचारिक रूप से मध्य-पूर्व की सुरक्षा व्यवस्था में शामिल कर लिया गया है, तो यह भारत के लिए एक अहम रणनीतिक चुनौती है।
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