
नई दिल्ली। बीते माह धरती उसके बाद पिछले हफ्ते सूर्य के बेहद करीब से गुजरे धूमकेतु comet (पुच्छल तारा) लियोनार्ड (Leonard) ने अपनी बहुरंगीय प्रकृति (multicolored nature) के कारण तमाम खगोल प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया। इसका सिर हरे रंग में चमक रहा था तो पिछले हिस्से (पूंछ) में अलग रंग दिखाई दिया। दुनियाभर में लोगों को लगा कि यह रहस्यमयी स्थिति (mysterious condition) सिर्फ लियोनार्ड (Leonard) के साथ ही हुई है। लेकिन खगोलविदों (astronomers) का कहना है कि यह कमोबेश हरेक धूमकेतु के साथ होता है।
इस बहुरंगीय प्रकृति को लेकर हाल ही में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने शोध में विस्तृत व्याख्या पेश की है। इसमें उन्होंने कहा कि शीर्ष भाग को पन्ने जैसा हरा रंग देने वाला अणु धूमकेतु के केंद्र में अपने निर्माण के चंद दिनों बाद ही सूर्य के प्रकाश से खत्म हो जाता है। इसके चलते लंबी छोर वाली पूंछ में हरा चमकने के लिए कुछ नहीं बचता। शोध के नतीजे बीते माह ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित हुए हैं।
डाई कार्बन अणु पैदा करते हैं हरा रंग
यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर टिमोथी डब्ल्यू श्मिट ने बताया, हमने प्रयोगशाला में अल्ट्रा वायलेट (यूवी) लेजर के इस्तेमाल से इस स्थिति को दर्शाया है, जिसमें पता लगा कि हरा रंग निकालने वाला अणु किस तरह खत्म हो जाता है। बर्फ और धूल का पुंज, धूमकेतु जब सूर्य के पास जाता है तो गर्म होने से उसकी बर्फ गैस में तब्दील होने लगती है। इससे धुंधले वातावरण का निर्माण होता है, जिसे ‘कोमा’ कहा जाता है। इल वातावरण में सम्मिलित कार्बन आधारित अणुओं पर सूर्य की यूवी किरणों की बमबारी होने से ये टूट जाते हैं।
फोटॉन कणों की करामात
वैज्ञानिक दशकों से मानते रहे हैं कि अंतरिक्ष में फोटॉन कण डाईकार्बन अणुओं को उत्तेजित अवस्था में डाल देते हैं। ब्रह्मांड की क्वांटम प्रकृति होने के चलते ऐसा उत्तेजित अणु फोटॉन उत्सर्जित कर अपनी मूल अवस्था में आ जाता है। डाई कार्बन के लिए फोटॉन सामान्य रूप से हरे रंग की रोशनी जैसा होता है। यह स्थिति धूमकेतु के शीर्ष पर दिखने वाले हरे रंग की व्याख्या करती है। लेकिन इसकी पूंछ में डाईकार्बन की कमी रहस्य की तरह थी। इस पर प्रो, श्मिट ने कहा कि सूर्य की किरणों में नहाए डाईकार्बन अणु का जीवनकाल करीब 44 घंटे होता है। इस दौरान ये अणु 80 हजार मील जितनी बड़ी दूरी तय कर सकते हैं। लेकिन धूमकेतु की पूंछ लाखों मील लंबी हो सकती है। इसके चलते वहां डाईकार्बन बहुत कम होते हैं। लिहाजा, धूमकेतु के पिछले हिस्से में हरा रंग नहीं चमकता। यही स्थिति लियोनार्ड में देखी गई है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved