
इन्दौर। जिला प्रशासन द्वारा किन्नरों की पहचान सुनिश्चित करने और समुदाय को औपचारिक रूप से सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए शुरू की गई पहचान प्रमाण पत्र (आईडी) प्रक्रिया ठप पड़ी हुई है। स्थिति यह है कि पूरे इंदौर जिले में अब तक केवल 130 किन्नर ही रजिस्टर्ड हुए हैं और उन्होंने पहचान प्रमाण पत्र बनवाए हैं, जबकि जिले में किन्नरों की संख्या हजारों में बताई जाती है। यह भी पिछले साल के आंकड़े हैं।
एरोड्रम थाना क्षेत्र में जबरन वसूली का एक और मामला सामने आया है, जिसमें धार पासिंग सफेद कार से आए कुछ किन्नरों ने धमकाकर एक परिवार से 31,000 रुपए वसूल लिए। हालांकि पीड़ित परिजनों ने घटना की शिकायत थाने में दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर नकली और असली किन्नर के विवाद को गर्मा दिया है, वहीं विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं।
हाल ही में किन्नरों के दो बड़े समूहों के बीच विवाद का मामला चर्चा में रहा था। उसके बाद प्रशासन ने स्पष्ट किया था कि किन्नरों की आधिकारिक पहचान आवश्यक है, ताकि अपराधी तत्व समुदाय के नाम का दुरुपयोग न कर सकें। पुलिस प्रशासन द्वारा बीचबचाव करने के बाद निर्देश भी जारी किए गए, लेकिन उसके बावजूद विभाग को अब तक एक भी नया आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। ऑनलाइन प्रक्रिया होने के बावजूद कोई भी किन्नर आवेदन नहीं कर रहा है, जबकि शहर में आए दिन अवैध वसूली की शिकायतें दर्ज की जा रही हैं।
समुदाय के सदस्य आगे ही नहीं आते
नंदलालपुरा व एमआर-10 क्षेत्र में संचालित हो रहे डेरों से भी कोई आवेदन नहीं आए हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार पूर्व में चलाए गए विशेष अभियान के दौरान भी बहुत कम संख्या में किन्नरों ने प्रक्रिया में रुचि दिखाई थी। बार-बार अपील और जागरूकता कार्यक्रमों के बाद भी समुदाय के अधिकांश सदस्य आगे नहीं आ रहे हैं। विभाग का कहना है कि प्रशासन चाहता है कि सभी किन्नर अपना आधिकारिक पहचान पत्र बनवाएं, ताकि किसी भी तरह की अवैध गतिविधि, वसूली या पहचान संबंधी भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके।
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