
इंदौर. 1954 का यह अत्यंत दुर्लभ चित्र इंदौर (Indore) शहर के महाराजा यशवंतराव होलकर द्वितीय चिकित्सालय (MYH) के निर्माण के दौरान उसकी सातवीं मंजिल से लिया गया है। इस वक्त जावरा कंपाउंड (Javra Compound) में कोई भी मकान का निर्माण नहीं हुआ है खाली जमीन है और लोग पेड़ों की छांव में बैठे दिखाई देते हैं। बेहद ही खूबसूरत जावरा कंपाउंड का नजारा है जहां दूर-दूर तक हरियाली दिखाई पड़ती है चुकी चित्र सच बोलते हैं। और खान बहादुर साहब का बंगला दिखाई देता है। 71 साल पहले का यह इंदौर का चित्र इस बात की गवाही देता है कि इंदौर कितना खूबसूरत और हरा भरा रहा होगा।
इंदौर में बहती कान्ह और सरस्वती का शीतल जल कितना साफ होगा। जहां एक तरफ सदियों पहले कुएं एवं बावड़ियों से इंदौर शहर की जल की पूर्ति की जाती थी। बाद में कान्ह और सरस्वती नदी ने इसकी पूर्ति की। खान नदी जिसे अब कान्ह कहां जाता असल में खान शब्द खनन से है मालवा के शहरों के आसपास बहुत सी नदियां एवं गांव है जिनके बाद खान लगा हुआ है।फिर शहर का विस्तार होता गया यशवंत सागर का निर्माण हुआ इंदौर शहर का विस्तार लगातार बढ़ता रहा और यशवंत सागर का पानी भी कम पड़ने लगा, एक विशाल आंदोलन हुआ नर्मदा लाने के लिए नर्मदा जी इंदौर आई फिर इसका प्रथम चरण एवं दूसरा चरण भी आया लेकिन पानी की कमी वैसी के वैसी बनी रही ।
इंदौर शहर की जमीन को बोरवेलों से छलनी किया गया और बेतहाशा पानी जमीन से निकल गया जिससे इसका वाटर टेबल नीचे आया, वही एक तरफ शहर के मध्य खाली जगहों ने इस वाटर टेबल को बनाए रखा। पुराने इंदौर शहर के मध्य अहिल्या आश्रम के सामने की जमीन हो या द मालवा यूनाइटेड मिल लिमिटेड, हुकुमचंद मिल लिमिटेड आदि अन्य मिलों की जमीनो ने जमीन के अंदर के पानी को बनाए रखा और हजारों की तादाद में वृक्षों ने शहर के पर्यावरण को संतुलित रखा। इंदौर शहर को भू माफिया की बुरी नजर लगी और बेतरतीब, बेतहाशा चारों दिशाओं में इसका फैलाव हुआ, ऐसा विकास हुआ कि यहां की हरियाली के साथ चेरिंदे परिंदे गायब हो गए। एक जमाना था जब इंदौर शहर में सैकड़ो की तादाद में छोटे बड़े बगीचे हुआ करते थे जो शहर के क्लाइमेट कंडीशंस को स्थिर और सुहावना रखते थे एक इकोसिस्टम था। शुद्ध हवा साफ पानी, सभी मौसम सुहावने लगते थे। जो इंदौर आता था वह यही बस जाता था। बेतहाशा अंधा विकास और सीमेंट के जंगल में तब्दील होता हुआ यहां शहर की हरियाली एक चिंता का विषय है।
होलकर रियासत के जमाने में विलियम बिस्को ने इंदौर शहर की हरियाली के लिए विशेष तौर पर काम किया था और महाराजा तुकोजीराव होलकर तृतीय शहर के पर्यावरण एवं हरियाली के लिए किए गए कार्यों के लिए उन्हें इनामो इकराम से नवाजा भी था और यही वजह थी कि इंदौर के एक बगीचे का नाम इसी पर्यावरण विद् के नाम पर बिस्को पार्क था जो बाद में नेहरू पार्क से जाना गया जिसमें आज भी हजारों हजारों परिंदों का बसेरा है।
आज रीगल के आसपास की हरियाली गायब सी हो गई है। तोता तथा अन्य परिंदों की आशियाने छीन लिए गए हैं इसके आसपास के इलाके से बड़े-बड़े विशाल सदियों पुराने वृक्षों को काट दिया गया।
क्या ऐसा विकास चाहता शहर?
आओ इस शहर को फिर से खूबसूरत बनाएं। सरकारें, सरकारी अफसर,नेता एवं बड़ी-बड़ी कंपनियां आएंगी और अपना-अपना काम कर कर चली जाएगी किसको कितना फायदा होगा नहीं मालूम लेकिन शहर का आम नागरिक हमेशा घाटे में रहेगा क्योंकि उसको यही रहना है। इंदौर शहर के प्रत्येक नागरिक क दायित्व है कि इस शहर की शुद्ध प्राण वायु के लिए सचेत हो।…….
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