कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। उससे पहले वहां मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का काम हो रहा है, जिस पर सियासी बवाल मचा हुआ है। अब जो खबरें आ रही हैं, उससे राज्य में नया सियासी तूफान उठ सकता है क्योंकि बंगाल के 23 जिलों में से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे हुए 10 जिलों में एक तिहाई से अधिक मतदाताओं का नाम हटाने के लिए प्रस्तावित किए गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, इन 10 जिलों में 22,00,858 मतदाताओं को मुख्य रूप से तीन आधारों मृत्यु, निवास स्थान में परिवर्तन या सत्यापन के दौरान अनुपस्थिति के तहत हटाने के लिए चिह्नित किया गया है।
इन 10 जिलों में मिलाकर कुल 3,96,33,580 मतदाता हैं, जो राज्य के कुल 7,66,37,529 मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है। पूरे राज्य में कुल 58,17,851 मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाने के लिए चिन्हित किया गया है, जिनमें से सीमावर्ती जिलों में प्रस्तावित हटाए जाने वाले मतदाताओं का हिस्सा लगभग 37.9 प्रतिशत है। जिस जिले में सबसे ज्यादा मतदाताओं के नाम हटाने का प्रस्ताव है, उनमें दक्षिण 24 परगना जिला सबसे ज्यादा प्रभावित जिला है। यह मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां 85,94,708 मतदाताओं में से 8,16,047 मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटने का खतरा है, जो लगभग 9.4 प्रतिशत है और 10 जिलों में सर्वाधिक है।
इन आंकड़ों का राजनीतिक महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि दक्षिण 24 परगना में डायमंड हार्बर भी शामिल है जो तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी का संसदीय क्षेत्र है।आंकड़ों के अनुसार, डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र में 1,63,650 मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने का खतरा है। पिछले लोकसभा चुनाव में अभिषेक बनर्जी ने डायमंड हार्बर से लगभग सात लाख वोटों के भारी अंतर से जीत प्राप्त की थी, इसलिए बड़ी संख्या में नाम हटाने का प्रस्तावित मामला राजनीतिक और जांच का विषय बन गया है।
उत्तर 24 परगना एक और महत्वपूर्ण सीमावर्ती जिला है जहां कुल 83,00,681 मतदाताओं में से 2,45,840 मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाने के लिए चिह्नित किया गया है। मुर्शिदाबाद में 57,64,085 मतदाताओं में से 2,78,706 मतदाताओं को जबकि मालदा में 31,99,533 मतदाताओं में से 2,01,827 मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाने का प्रस्ताव है, जो लगभग 6.3 प्रतिशत है।
उत्तरी और दक्षिणी दिनाजपुर में भी असर
उत्तर दिनाजपुर में कुल 23,19,890 मतदाताओं में से 1,70,490 मतदाताओं को और नादिया में 44,18,838 मतदाताओं में से 68,280 मतदाताओं को हटाने के लिए चिह्नित किया गया है। दक्षिण दिनाजपुर में 13,31,548 मतदाताओं में से 80,975 मतदाताओं जबकि जलपाईगुड़ी में 19,14,022 मतदाताओं में से 1,33,091 मतदाताओं को हटाने के लिए चिह्नित किया गया है। अलीपुरद्वार में 12,99,486 मतदाताओं में से 92,267 मतदाताओं को और कूच बिहार में कुल 24,90,789 मतदाताओं में से 1,13,335 मतदाताओं को हटाने के लिए चिह्नित किया गया है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय के अधिकारियों ने कहा कि यह प्रक्रिया चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार की जा रही है। नाम न छापने की शर्त पर सीईओ कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह एक नियमित लेकिन विस्तृत विशेष गहन पुनरीक्षण है। मतदाता का नाम हटाने का आधार स्पष्ट हैं, मतदाता की मृत्यु, किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरण या बार-बार दौरा करने पर भी मतदाता का पता न चलना या अनुपस्थित रहना। इस प्रक्रिया में कुछ भी मनमाना नहीं है।”
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि वास्तविक मतदाताओं के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं। उन्होंने कहा, “जिन मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाने का प्रस्ताव है उन्हें निर्धारित समय के अंदर दावा या आपत्ति दर्ज करने का अधिकार है। वैध दस्तावेज़ प्रस्तुत करने पर उनका नाम बरकरार रखा जाएगा। इसका उद्देश्य मतदाता सूची को स्वच्छ एवं अपडेट करना है।”
सीमावर्ती जिलों, विशेषकर दक्षिण 24 परगना और मुर्शिदाबाद में बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने से राजनीतिक बहस छिड़ने की आशंका है, खासकर तब जब विपक्षी दल इस संशोधन प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। राज्य के 23 जिलों और 10 सीमावर्ती जिलों में कुल प्रस्तावित नामों में से 37.8 प्रतिशत नाम हटाए जाने का प्रस्ताव है, जिसके कारण एसआईआर ने पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची प्रबंधन को एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है।
एक राजनीतिक विष्लेशक के मुताबिक, “यह अपेक्षित था। बड़ी संख्या में लोग सीमा की कमजोरियों का फायदा उठाकर राज्य में घुसपैठ कर चुके हैं। वे मतदाता पहचान पत्र या आधार कार्ड बनवा तो लेते हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि चल रही एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उनकी पहचान हो जाएगी। इसलिए राज्य की विभिन्न सीमाओं पर लोगों को बंगलादेश वापस जाने के लिए इकट्ठा होते हुए देखा जा सकता है। यह इस बात का पर्याप्त संकेत है कि बड़ी संख्या में बंगलादेशी बिना उचित अनुमति के इस देश में रह रहे हैं।”
हालांकि, चुनाव अधिकारियों का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्रशासनिक है। सीईओ कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि एक विश्वसनीय चुनाव की शुरुआत सटीक मतदाता सूची से होती है और संख्या व्यापक होने के बावजूद, संशोधन प्रक्रिया को इसी संदर्भ में देखना चाहिए। एक बड़ी बात यह भी है कि सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। लिहाजा, जिनके नाम मतदाता सूची से काटे जाएंगे. उसकी सबसे ज्यादा मार भी इसी समुदाय पर पड़नी है। ऐसे में राज्य में एक नया सियासी तूफान उठने का खतरा है।
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