
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोड चौड़ीकरण के संबंध में दिए फैसले को ही बनाया आधार
उद्योगों की याचिका भी खारिज, टीडीआर और अतिरिक्त एफएआर का ही मिलेगा लाभ
इंदौर, राजेश ज्वेल
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 99 पेज का एक महत्वपूर्ण आदेश नगर निगम एक्ट (Municipal Corporation Act) की धारा 305 को लेकर दिया था, जिसमें यह कहा गया कि मास्टर प्लान (master plan) लागू होते ही सडक़ चौड़ीकरण में शामिल जमीन निगम की रहेगी और इसमें किसी तरह के संशोधन की फिलहाल आवश्यकता नहीं है। जमीन मालिक टीडीआर और अतिरिक्त एफएआर का लाभ लें और अगर नकद मुआवजे की मांग करते हैं तो धारा 387 के तहत जिला कोर्ट में उसकी अपील करें। अभी इंदौर हाईकोर्ट ने कल सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाकर एमआर-4 की सालों से चल रही याचिकाओं को खारिज किया, वहीं स्थगन आदेश भी हटाते हुए रोड निर्माण का रास्ता साफ कर दिया। उद्योगों द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि मास्टर प्लान की रोड के अलाइनमेंट बदलने का अधिकार किसी को भी नहीं है।
इंदौर स्टील्स एंड आयरन मिल्स लिमिटेड के डायरेक्टर गुरुचरण सिंह विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन व अन्य की जो रीट पिटीशन 2023 से चल रही थी उसका निराकरण कल सिंगल बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश के साथ कर दिया। 19 पेज का यह आदेश न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा ने दिया, जिसमें एमआर-4 निर्माण को लेकर स्थिति स्पष्ट की गई। अभी 22 सितम्बर को सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रखा गया था, जिसे कल जारी किया गया। इसमें नगर निगम सहित अन्य भी पक्षकार थे, जिसमें याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिनव मल्होत्रा और स्पॉन्डेंट नम्बर-2 की ओर से प्राधिकरण के विधि अधिकारी अभिभाषक अम्बर पारे और रिस्पॉन्डेंट नम्बर-4 और 5 की ओर से अमोल श्रीवास्तव मौजूद रहे। एमआर-4 सडक़, जो कि मास्टरप्लान-2021 के मुताबिक प्रस्तावित है और इसकी चौड़ाई 45 मीटर है। वर्तमान में इसे 30 मीटर तक ही चौड़ा किया जा सका है, क्योंकि दोनों तरफ के बाधक निर्माणों पर न्यायालयीन प्रक्रिया चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला रवीन्द्र रामचंद्र वाघमारे विरुद्ध निगम के मामले में नगर निगम अधिनियम 1956 की धारा 305 को लेकर सुनाया था, जिसमें यह कहा गया कि सडक़ चौड़ीकरण के लिए अलग से भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता नहीं है और टीडीआर-एफएआर का लाभ दिया जा सकता है और अगर जमीन मालिक इसे ना लेना चाहे, तो फिर अलग से नगद मुआवजे के लिए अलग से निर्धारित कानून की सहायता ले सकता है। एमआर-4 निर्माण के लिए निगम ने रेलवे की जमीन भी लेने का प्रस्ताव रखा था। उसे भी हाईकोर्ट ने अपने फैसले में खारिज कर दिया और स्पष्ट कहा कि मास्टरप्लान की रोड की निर्धारित चौड़ाई को ना तो कम-ज्यादा कर सकते हैं और ना ही उसके अलाइनमेंट को बदलने का अधिकार किसी भी संस्था को है, जिसमें नगर निगम, प्राधिकरण, लोक निर्माण विभाग से लेकर अन्य सभी सरकारी एजेंसियां शामिल हैं। सडक़ रेखा यानी स्ट्रीट लाइन निर्धारित होने पर भूमि निगम में निहीत हो जाती है और बाद में प्रतिकर निर्धारण भुगतान की प्रक्रिया ही अपनाई जा सकती है। मास्टर प्लान सभी के लिए बाध्यकारी है और नगर निगम का वैधानिक दायित्व है कि वह उसे लागू करे। 2017 में प्राधिकरण ने जो आश्वासन दिया था वह भी तात्कालिक परिस्थितियों तक सीमित था और वर्तमान में नगर निगम के लिए बाध्यकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि सिंहस्थ के मद्देनजर भी एमआर-4 का निर्माण महत्वपूर्ण है और 2016 के सिंहस्थ के वक्त इसका निर्माण शुरू किया था और 10सालों में भी सडक़ नहीं बन पाई। अब हाईकोर्ट का यह आदेश एमआर-4 के लिए भी
महत्वपूर्ण साबित होगा।
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