
इंदौर। ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट (joint development agreement) और टीडीआर (TDR) के साथ ही रॉयल्टी (Royalty) पर टैक्स की वसूली के लिए जीएसटी (GST) विभाग द्वारा बड़ी संख्या में नोटिस और कई मामलों में आदेश भी जारी कर दिये गये गए हैं, जबकि उक्त सभी पर जीएसटी लागू नहीं होता लेकिन जिन लोगों को नोटिस मिले हैं उनमें से कई ने कर्रवाई के डर से टैक्स का भुगतान भी कर दिया है। इस संबंध में लगभग 200 करोड़ रुपए की वसूली के लिए नोटिस या ऑर्डर जारी किए जा चुके हैं।
सीए शैलेंद्र पोरवाल कहते हैं कि विभाग द्वारा डेवलपमेंट राइट्स पर टैक्स की वसूली की जा रही है। जबकि ऐसी स्थिति में जीएसटी नहीं बनता है। वहीं टीडीआर के ट्रांसफर पर भी कोई टैक्स नहीं बनता है और ये कॉन्सेप्ट तो अभी एमपी में ठीक से शुरू भी नहीं हुआ है। इसी तरह रॉयल्टी पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी जीएसटी लायबिलिटी पर स्पष्टता के अभाव में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस संबंध में मप्र हाई कोर्ट ने स्टे दे रखा है और उनके फाइनल ऑर्डर का इंतजार है।
जीएसटी विभाग सोचता है कि जेडीए में डेवलपर द्वारा सर्विस देने के बाद विकसित या निर्माण किए हिस्से को जमीन मालिक ख़ुद के द्वारा बेचने के लिए रख लेता है। इसके बदले वो अपनी ज़मीन पर विकास कार्य का राइट ट्रांसफऱ कर देता है। इसके चलते रिवर्स चार्ज मेथड का हवाला देकर कहीं तो डेवलपर से टैक्स मांगा जा रहा है और कहीं जमीन मालिक से। इस संबंध में ना तो कोई लॉ में नियम है। ना सरकार की तरफ से अलग से कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। इस कारण नोटिस की भाषाएं भी अलग-अलग हैं। इस संबंध में मुंबई के एडवोकेट भरत रायचंदानी का कहना है कि डेवलमेंट राइट्स जैसी कोई चीज का अस्तित्व ही नहीं है। इसी तरह टीडीआर जमीन को या उसके हिस्से को त्यागने या सेल करने या ट्रांसफऱ करने के एवज में मिला मुआवजा है। सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने इस तर्क को दरकिनार किया है कि रॉयल्टी अपने आप में टैक्स है। इसे सर्विस नहीं बताया। अत: इस पर सर्विस टैक्स की लायबिलिटी नहीं है।