
डेस्क: भारत (India) की सैन्य ताकत (Military Power) ने एक बार फिर दुनिया को अपनी क्षमता का एहसास कराया है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा के चांदीपुर स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (ITR) में पिनाका लॉन्ग रेंज गाइडेड रॉकेट (LRGR 120) का पहला सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया है. जिसकी मारक क्षमता 120 किलोमीटर है.
इस बढ़ी हुई रेंज के साथ, पिनाका अब भारतीय सीमा से पाकिस्तान के इस्लामाबाद, लाहौर और सियालकोट जैसे प्रमुख शहरों को निशाना बनाने में सक्षम है. यह वही पिनाक है, जिसका नाम सुनते ही भारतीय पौराणिक कथाओं में शक्ति, विनाश और धर्म की रक्षा की तस्वीर उभर आती है. आइए पिनाक नाम के धार्मिक अर्थ और उसके महत्व के बारे में जानते हैं.
पिनाका रॉकेट सिस्टम का नाम भगवान शिव के दिव्य धनुष ‘पिनाक’ के नाम पर रखा गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पिनाक भगवान शिव का दिव्य धनुष था. इसी धनुष से उन्होंने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर ने अपने अत्याचारों से पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचा रखा था और देवता भी उससे भयभीत थे. भगवान शिव ने पिनाक को धारण कर एक ही बाण से त्रिपुरासुर का संहार किया, जिससे पूरे ब्रह्मांड में शांति स्थापित हुई. यही कारण है कि पिनाक को विनाश के साथ-साथ धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है. इसलिए पिनाक केवल एक हथियार नहीं, बल्कि भारतीय पौराणिक परंपरा में शक्ति और धर्म का प्रतीक है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिपुरासुर वध के बाद यह दिव्य धनुष राजा जनक के पूर्वज देवरात को प्राप्त हुआ. समय के साथ यह धनुष मिथिला में सुरक्षित रखा गया और इसे उठाना तो दूर, हिलाना भी असंभव माना जाता था.सीता स्वयंवर के दौरान राजा जनक ने शर्त रखी कि जो इस धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही सीता से विवाह करेगा. त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने पिनाक को उठाया ही नहीं, बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष को तोड़ दिया, जिससे सीता स्वयंवर पूरा हुआ. यह घटना भगवान राम की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक मानी जाती है.
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