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हिमालय में कैसे अपनी सैन्य पकड़ मजबूत कर रहा है भारत, LAC पर सुरंगों और एयरबेस का निर्माण, टेंशन में ड्रैगन

December 28, 2025

नई दिल्ली । हिमालय की ऊंची चोटियों (Himalayan peaks) और दुर्गम घाटियों में भारत एक बड़े पैमाने पर निर्माण अभियान चला रहा है। सड़कें, सुरंगें, पुल और हवाई पट्टियां (Roads, tunnels, bridges, runways) बनाई जा रही हैं। यह सब चीन के साथ सीमा पर संभावित टकराव की तैयारी के तहत हो रहा है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत ने अपनी रक्षा रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत सैकड़ों मिलियन डॉलर खर्च कर हिमालय में बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है, ताकि सीमा पर अपनी स्थिति को मजबूत किया जा सके।

2020 का गलवान संघर्ष से सबक

2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जबकि चीन की ओर से भी भारी नुकसान हुआ। यह 45 वर्षों में पहली बार था जब सीमा पर गोलीबारी के बिना हाथापाई हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घटना ने भारत की कमजोरियों को उजागर किया। चीन ने दशकों से तिब्बत और शिनजियांग में सड़कों, रेलवे और सैन्य ठिकानों का जाल बिछाया था, जिससे वह घंटों में सैनिक और सामग्री भेज सकता था। वहीं भारत को दुर्गम इलाके और खराब कनेक्टिविटी के कारण दिनों लग जाते थे।



रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स प्रमुख मेजर जनरल अमृत पाल सिंह ने कहा- यह सोच में नाटकीय बदलाव था। हमें अपनी पूरी रणनीति बदलनी पड़ी। पहले भारत की नीति थी कि सीमा पर सड़कें न बनाई जाएं, क्योंकि दुश्मन इसका फायदा उठा सकता है। लेकिन अब यह सोच बदल गई है।

प्रमुख परियोजनाएं: हिमालय को मजबूत बनाना

भारत की बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) इस अभियान की रीढ़ है। 2025 में BRO का बजट 810 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। हजारों किलोमीटर सड़कें, दर्जनों हेलीपैड और कई हवाई अड्डे बनाए जा रहे हैं।

जोजिला सुरंग
यह सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। 11,500 फीट की ऊंचाई पर बन रही यह 14 किलोमीटर लंबी सुरंग 750 मिलियन डॉलर से अधिक की लागत वाली है। 2020 के संघर्ष के बाद निर्माण शुरू हुआ। पूरा होने के बाद यह सुरंग लद्दाख तक सालभर आवाजाही सुनिश्चित करेगी। अभी भारी बर्फबारी के चलते लद्दाख कई-कई महीनों तक शेष देश से कट जाता है। सुरंग बनने से न केवल यात्रा समय घटेगा, बल्कि सैन्य और नागरिक आपूर्ति भी निरंतर बनी रहेगी।



न्योमा एयरबेस और हवाई कनेक्टिविटी

भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में हवाई कनेक्टिविटी भी बड़े पैमाने पर बढ़ाई है। लद्दाख में 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित न्योमा एयरबेस चीन सीमा से मात्र 19 मील दूर है। यहां C-130J जैसे बड़े विमान उतर सकते हैं। यह रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। भारत ने 30 से अधिक हेलिपैड बनाए हैं और कई हवाई पट्टियों का निर्माण या अपग्रेड किया है।

अन्य परियोजनाओं में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड में सड़कें और पुल शामिल हैं। हाल ही में 125 BRO परियोजनाओं का उद्घाटन हुआ, जिनमें श्योक सुरंग और कई पुल शामिल हैं। BRO के कर्मचारी कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं- ऊंचाई, ठंड और दुर्गम इलाके।

ऊंचाई पर रसद: हर महीने 220 पाउंड प्रति सैनिक

हालांकि बुनियादी ढांचा बढ़ाने के बावजूद ऊंचाई वाले मोर्चों पर सामान पहुंचाना अब भी बेहद चुनौतीपूर्ण है। WSJ के मुताबिक, रेल और ट्रक आवश्यक सामग्री को जम्मू-कश्मीर के डिपो तक पहुंचाते हैं, वहां से काफिले लेह जाते हैं। इसके बाद छोटे वाहनों, और आखिरी चरण में- करीब 20,000 फीट की ऊंचाई पर पोर्टरों और खच्चरों के जरिए सामान पहुंचाया जाता है।

पूर्व नॉर्दर्न कमांड प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा- यह हर साल नियमित तौर पर किया जाने वाला बेहद विशाल लॉजिस्टिक ऑपरेशन है। उनके अनुसार, हर सैनिक को हर महीने करीब 220 पाउंड (लगभग 100 किलोग्राम) सामग्री चाहिए, जबकि एक छोटा सा आउटपोस्ट रोजाना लगभग 13 गैलन ईंधन खर्च करता है और यह सब किसी न किसी के कंधे पर वहां तक पहुंचता है।

रेड कार्पेट से सख्त जवाबी तैयारी तक

स्टिमसन सेंटर के सीनियर फेलो डैनियल मार्के के हवाले से WSJ ने लिखा कि कभी भारत में यह धारणा थी कि सीमावर्ती इलाकों में बड़ी सड़कों का निर्माण सैन्य दृष्टि से नुकसानदेह हो सकता है- मानो किसी संभावित आक्रमण के लिए रेड कार्पेट बिछा दिया जाए। लेकिन 2000 के दशक के मध्य से यह सोच बदलने लगी, खासकर तब जब चीन ने तिब्बत और शिनजियांग में सड़क और रेल नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया।

जोखिम भी, पर मकसद प्रतिरोध

विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ता बुनियादी ढांचा और गश्त विवादित क्षेत्रों- जैसे पेंगोंग त्सो में टकराव की आशंकाएं भी बढ़ा सकता है, जहां दोनों सेनाएं अलगाव समझौतों के बावजूद मौजूद हैं। फिर भी भारतीय अधिकारी इसे चीन के साथ होड़ नहीं, बल्कि निवारक (डिटरेंस) कदम मानते हैं। मेजर जनरल अमृत पाल सिंह के शब्दों में- हम हद से ज्यादा नहीं जा रहे।

यह हिमालयी निर्माण होड़ भारत की रक्षा नीति में बड़ा बदलाव दर्शाती है। यह न केवल सैन्य तैयारी है, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास और स्थानीय लोगों की जीवन स्तर सुधारने का भी प्रयास है। लेकिन यह दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच तनाव को भी बढ़ा रहा है।

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