
नई दिल्ली । भारत की सेना (Indian Army) दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक है, जिसकी रीढ़ उसकी बहादुर और अनुशासित रेजीमेंट्स होती हैं. ये रेजीमेंट्स न केवल देश की सीमाओं की रक्षा करती हैं, बल्कि युद्ध के मैदान में दुश्मनों का खात्मा करने में सबसे आगे खड़ी रहती हैं. रेजीमेंट भारतीय सेना की एक सैन्य इकाई होती है, जिसमें विशिष्ट क्षेत्र, जाति या विशेषता के सैनिक शामिल होते हैं, हर रेजीमेंट की अपनी एक अलग पहचान, युद्धघोष, परंपरा और इतिहास होता है. भारत की ताकतवर रेजिमेंट में से एक है आर्टिलरी रेजिमेंट (Artillery Regiment).
भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट एक ऐसी शाखा है, जो युद्ध के मैदान में अपनी विस्फोटक ताकत से दुश्मनों की रेखाओं को छिन्न-भिन्न कर देती है. इसे युद्ध का निर्णायक अंग माना जाता है और इसकी गोलाबारी भारतीय सेना की इन्फेंट्री को आगे बढ़ने के लिए स्पष्ट रास्ता देती है. भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट की नींव ब्रिटिश काल में पड़ी थी. इसकी शुरुआत 2.5 इंच की गन से हुई और समय के साथ यह रेजिमेंट दुनिया के अत्याधुनिक हथियारों से लैस हो गई. 28 सितंबर 1827 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी के तहत बनी 5 माउंटेन बैटरी यानी की भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट की पहली इकाई का गठन किया गया था. यही दिन आज ‘गनर्स डे’ के रूप में पूरे सम्मान के साथ मनाया जाता है.
अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों की बनाई थी अलग गोलंदाज यूनिट
1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी दो तोपखाने की कंपनियां बॉम्बे में बनाई. इसके बाद दूसरे प्रेसीडेंसी में भी इसी तरह तोपखानों की कंपनियां गठित की गई. अंग्रेजी सेना के लिए ये तोपखाने इतने महत्वपूर्ण थे कि अंग्रेजों ने तोपखाने में भारतीय सैनिकों को शामिल करने की अनुमति नहीं दी. हां, तोपखानों में सहायकों के रूप में भारतीय कर्मियों को रखा गया.
तोपखानों में काम करने वाले इन भारतीय सहायकों को ही गोलंदाज कहा जाता था. यह उस समय बॉम्बे फुट आर्टिलरी की गोलंदाज बटालियन की 8वीं कंपनी के रूप में स्थापित की गई थी. यही गोलंदाज आगे चलकर भारतीय तोपखाना यूनिट्स की रीढ़ बने. 1857 का भारतीय विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में भड़क उठा. इसमें बंगाल आर्टिलरी के कई भारतीय सैनिक विद्रोह में शामिल थे और तब अस्तित्व में मौजूद पैदल तोपखाने की तीन बटालियनों को 1862 में भंग कर दिया गया था.
इसके बाद, कुछ को छोड़कर सभी भारतीय तोपखाने इकाइयों को भंग कर दिया गया. सिर्फ वही तोपखाने की इकाईयां बची रह गई, जो गोलअंदाजों की थी. इनका इस्तेमाल उस समय ट्रेनों को चलाने में या अन्य कामों में किया जाता था. इनमें ही एक थी गोलंदाजों की 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी, जो आगे चलकर रॉयल इंडियन आर्मी और भविष्य में भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट बनी.
मुगलकाल में भी थी तोपों की धमक
भारत में तोपखाने के प्रयोग का श्रेय मुगल सम्राट बाबर को जाता है, जिन्होंने 1526 की पानीपत की लड़ाई में बारूद और तोपों का उपयोग कर इब्राहिम लोदी को हराया था। हालांकि, इससे भी पहले 14वीं और 15वीं शताब्दी में बहमनी और गुजरात सल्तनत में तोपों के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं. आज के समय में आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की दूसरी सबसे बड़ी शाखा है. इसे दो भागों में विभाजित किया गया है. पहली, जो भारी हथियारों जैसे तोप, मोर्टार, रॉकेट और मिसाइल्स से लैस है. दूसरी, जो सर्विलांस, रडार, ड्रोन और आधुनिक नियंत्रण प्रणालियों से युक्त है.
आर्टिलरी रेजिमेंट का प्रत्येक सैनिक ‘गनर’ कहलाता है, चाहे वह फायरिंग कर रहा हो या गन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में लगा हो. इस रेजिमेंट से कई प्रतिष्ठित आर्मी जनरल भी निकल चुके हैं जैसे जनरल पीपी कुमारमंगलम, जनरल ओपी मल्होत्रा, जनरल एसएफ रोड्रिग्स, और जनरल दीपक कपूर. पहले इस रेजिमेंट में जातीय और क्षेत्रीय आधार पर यूनिट्स बनाई जाती थीं (जैसे सिख, जाट, डोगरा, राजपूत आदि), पर आज इसमें पूरे भारत से, अंडमान-निकोबार से लेकर जम्मू-कश्मीर तक, हर क्षेत्र के सैनिक शामिल होते हैं.
भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट ने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी ताकत दिखाई है. श्रीलंका में IPKF मिशन के तहत, कांगो, सोमालिया और सिएरा लियोन में UN पीसकीपिंग ऑपरेशन्स में भाग लिया था. 1988 में मालदीव में तख्तापलट की कोशिश को विफल करने के ऑपरेशन में भी इस रेजिमेंट की भूमिका अहम रही है. इस रेजिमेंट को एक विक्टोरिया क्रॉस, एक अशोक चक्र, सात महावीर चक्र, 95 वीर चक्र, 12 युद्ध सेवा पदक, 77 शौर्य चक्र और 227 सेना पदकों से नवाज़ा गया है, जो इसके शौर्य और योगदान को प्रमाणित करता है.
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