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अमेरिकी कृषि उत्पादों के विरोध में डटकर खड़ा भारत, टैरिफ झेलने को तैयार, जानिए क्‍या है वजह ?

August 02, 2025

नई दिल्‍ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने गुरुवार को भारत (India) से आयात होने वाली वस्तुओं पर 25% शुल्क (टैरिफ) लगा दिया है। यह फैसला भारत और अमेरिका (India and America) के बीच लंबे समय से चल रही व्यापार वार्ताओं के विफल हो जाने के बाद लिया गया। किसी व्यापार समझौते पर नहीं पहुंच पाने की मुख्य वजह भारत का अपना श्रम-प्रधान कृषि क्षेत्र बचाने की प्रतिबद्धता है, जिसे वह विदेशी प्रभाव से सुरक्षित रखना चाहता है।

अमेरिका किन उत्पादों के लिए भारत से बाजार खोलने की मांग कर रहा है?
अमेरिका चाहता है कि भारत उसके डेयरी, पोल्ट्री, मक्का (कॉर्न), सोयाबीन, चावल, गेहूं, एथेनॉल, फल और मेवे जैसे कृषि उत्पादों के लिए अपने बाजार खोल दे। भारत कुछ हद तक अमेरिकी सेब और सूखे मेवों को बाजार में स्थान देने को तैयार है, लेकिन मक्का, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी उत्पादों को लेकर सख्त रुख बनाए हुए है।

भारत इन अमेरिकी उत्पादों का विरोध क्यों कर रहा है?
भारत की चिंता का मुख्य कारण है अमेरिका के अधिकांश मक्का और सोयाबीन का जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) होना। भारत वर्तमान में जीएम फसलों के आयात की अनुमति नहीं देता। देश में यह धारणा है कि जीएम फसलें स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी से जुड़े कई संगठन भी जीएम खाद्य फसलों का विरोध कर रहे हैं। भारत द्वारा विकसित की गई उच्च उपज वाली जीएम सरसों की किस्म भी अभी कानूनी विवादों के चलते व्यावसायिक खेती के लिए प्रतिबंधित है।


डेयरी क्षेत्र भी अत्यंत संवेदनशील है क्योंकि यह देश के करोड़ों छोटे और भूमिहीन किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां मॉनसून की अनिश्चितता के कारण फसलों की पैदावार प्रभावित होती है। भारतीय उपभोक्ताओं की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अमेरिका में पशुओं को अक्सर मांस या जानवरों के अवशेष से बने चारे से पाला जाता है, जो शुद्ध शाकाहारी भारतीय उपभोक्ताओं की आस्थाओं के खिलाफ है।

कृषि उत्पादों का आयात राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्यों है?
भारत अधिकांश खाद्य वस्तुओं में आत्मनिर्भर है, सिवाय खाद्य तेलों के। करीब तीन दशक पहले भारत ने खाद्य तेलों के आयात को उदार बनाया था, जिसके चलते अब दो-तिहाई तेल विदेशों से मंगाना पड़ता है। सरकार नहीं चाहती कि गेहूं, चावल, मक्का जैसे आवश्यक खाद्य उत्पादों के मामले में भी वही गलती दोहराई जाए।

हालांकि कृषि क्षेत्र का भारत की 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में हिस्सा मात्र 16% है, फिर भी यह करीब 70 करोड़ भारतीयों की जीविका का साधन है। किसान भारत में सबसे शक्तिशाली मतदाता समूह हैं, और उनकी चिंताएं राजनीतिक दलों के लिए अहम हैं। चार साल पहले, जब मोदी सरकार ने विवादास्पद कृषि कानूनों को लागू करने की कोशिश की थी, तो उसे किसानों के भारी विरोध के बाद पीछे हटना पड़ा था। अमेरिका से सस्ते आयात की अनुमति देने से स्थानीय कीमतों में कमी आ सकती है, जिससे विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका मिलेगा।

इसके अलावा, बिहार जैसे प्रमुख मक्का उत्पादक राज्यों में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और अमेरिकी इथेनॉल आयात की अनुमति देने से स्थानीय मक्का की कीमतें कम हो सकती हैं, जिससे किसानों में नाराजगी फैल सकती है और बीजेपी के लिए राजनीतिक नुकसान हो सकता है सरकार को डर है कि अगर अमेरिकी कृषि उत्पादों की बाढ़ आई तो भारतीय किसानों को नुकसान होगा, जिससे विपक्ष को सरकार के खिलाफ हमले का मौका मिलेगा। साथ ही, अमेरिका को छूट देने से अन्य देशों के साथ भी ऐसे ही समझौते करने का दबाव बढ़ेगा।

भारत और अमेरिका की कृषि संरचना में क्या अंतर है?
भारत और अमेरिका के कृषि मॉडल में जमीन-आसमान का फर्क है। भारत में औसतन एक खेत की साइज 1.08 हेक्टेयर (2.67 एकड़) होती है, जबकि अमेरिका में औसतन 187 हेक्टेयर। भारत के डेयरी किसान 2-3 जानवर पालते हैं, वहीं अमेरिका में एक डेयरी फार्म में सैकड़ों पशु होते हैं। इसके अलावा, भारत में खेती अभी भी परंपरागत तरीकों पर आधारित है, जबकि अमेरिका की कृषि प्रणाली पूरी तरह मशीनों और तकनीक से लैस है।

भारत अमेरिकी एथेनॉल को क्यों नहीं लेना चाहता?
भारत की एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) योजना का लक्ष्य है कि देश ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाए और देशी किसानों को मक्का व गन्ना बेचने का मौका मिले। हाल ही में भारत ने पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य समय से पहले हासिल कर लिया है।

देश के निजी और सरकारी क्षेत्र में भारी निवेश के साथ नई डिस्टिलरियां लगाई गई हैं और किसानों ने मक्के की खेती का दायरा भी बढ़ाया है। ऐसे में अगर अमेरिका से सस्ता एथेनॉल आने लगेगा, तो इससे स्थानीय मक्का की कीमतें गिरेंगी, जिससे किसानों में नाराजगी बढ़ेगी- खासकर बिहार जैसे राज्यों में, जहां आगामी विधानसभा चुनाव होने हैं।

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