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भारत अंतरिक्ष में रचेगा एक और इतिहास, ISRO बनाएगा शक्तिशाली रॉकेट, अपना स्पेस स्टेशन भी बनेगा

July 01, 2025

देहरादून । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) के चेयरमैन डॉ.वी नारायणन (Dr. V Narayanan) ने कहा कि भारत (India) ऐसे रॉकेट (Rocket) पर काम कर रहा है, जो पृथ्वी की लोअर ऑर्बिट पर 75 हजार किलो तक के सैटेलाइट (Satellite) लॉन्च करेगा। रॉकेट इस काम को करीब 27 दिन में पूरा कर लेगा। यह अब तक का सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट होगा। उन्होंने यह बात सोमवार को दून स्थित सीएम आवास में कही। वह यहां हिमालयी राज्यों के परिप्रेक्ष्य में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयोग अंतरिक्ष सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

2030 तक अपना स्पेस स्थापित करने का लक्ष्य
इसरो प्रमुख ने बताया कि भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करना और वर्ष 2040 तक अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर भेजने का है। उन्होंने कहा कि भारत ने पहला रॉकेट लॉन्च वर्ष 1963 में किया था। तब से अब तक भारत ने 100 से ज्यादा रॉकेट लॉन्च किए हैं। वर्ष 1975 तक हमारे पास अपने सैटेलाइट नहीं थे, अब 131 सैटेलाइट हैं। टीवी ब्रॉडकास्ट से लेकर मौसम की भविष्यवाणी तक हर जगह सैटेलाइट बहुत मददगार साबित हो रहे हैं। इसके अलावा इसरो ह्यूमन स्पेस प्रोग्राम पर भी काम कर रहा है।


भारत ने कई रिकॉर्ड स्थापित किए
नारायणन ने कहा कि एक समय था, जब हमारे रॉकेट साइकिल पर ले जाए जाते थे, पर अब भारत कई विश्व रिकॉर्ड स्थापित कर चुका है। दुनिया में सबसे पहले हमने चंद्रमा पर पानी के अणु की मौजूदगी का पता लगाया। भारत पहला देश बना, जिसने चंद्रमा के साउथ पोल पर पहली बार लैंडिंग की। भारत, आदित्य एल-1 मिशन के साथ सूर्य का अध्ययन करने वाला चौथा देश बन गया है। भारत ने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया था और उसकी कक्षा में उपग्रह भेजने वाला चौथा देश बना। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में भारत 2047 तक विकसित भारत अवश्य बनेगा।

राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के निदेशक डॉ.प्रकाश चौहान ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आज हमारे जीवन के तमाम क्षेत्रों में अंतरिक्ष डाटा का इस्तेमाल होता है। अंतरिक्ष में सैटेलाइट हमें जीपीएस नेविगेशन के साथ कई अपडेट देते हैं। उत्तराखंड में हमने पशुधन का डाटा ऑनलाइन किया था। ऋषिगंगा, चमोली आपदा के दौरान हमने सैटेलाइट के माध्यम से मैपिंग की और डेटा तैयार किया। इसका प्रयोग बाद में राष्ट्रीय नीति में भी किया गया। पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट में भी इस डाटा का इस्तेमाल हुआ। इसके अलावा अर्थ ऑब्जर्वेशन, सैटेलाइट संवाद और सैटेलाइट नेविगेशन ने पूरी तरह से हमारे जीवन को बदलने का काम किया है। उत्तराखंड में आपदाओं के दौरान मैपिंग, वन संरक्षण एवं वनाग्नि की मैपिंग के क्षेत्र में सेटेलाइट डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा है। ग्लेशियर लेक की मॉनिटरिंग, बाढ़, बादल फटने जैसी घटनाओं के पूर्वानुमान का भी काम किया जा रहा है।

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