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शेख हसीना को नहीं सौंपेगा भारत, इन दो कारण से नहीं हो सकता प्रत्यर्पण

November 18, 2025

नई दिल्ली। बांग्लादेशी न्यायाधिकरण (Bangladeshi tribunal) के फैसले और अंतरिम सरकार (interim government) के मुखिया मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) के शेख हसीना (Sheikh Hasina) को प्रत्यर्पित किए जाने की मांग के बावजूद यह बात तो साफ है कि भारत सरकार ऐसा नहीं करेगी। भारत हमेशा से अपने मित्रों के लिए जोखिम उठाता रहा है। बांग्लादेश सरकार के दिसंबर, 2024 में हसीना को सौंपे जाने की मांग के बावजूद भारत ने उन्हें सुरक्षित रखा हुआ है।


फैसले के बाद सोमवार को सरकार ने जो बयान जारी किया, उसमें भी इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। खास बात यह है कि न्यायाधिकरण का फैसला एकतरफा है, इसमें हसीना को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया है। यह मामला आपराधिक से ज्यादा राजनीतिक है, यही आधार है जो प्रत्यर्पण न करने के भारत के पक्ष को मजबूत बनाता है।

भारत-बांग्लादेश ने 2013 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, इसके आधार पर ही बांग्लादेश हसीना को सौंपने की मांग कर रहा है। इसमें 2016 में संशोधन हुआ था। इसी संधि के तहत भारत ने 2020 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के दो दोषियों को बांग्लादेश भेजा था। संधि में दोनों देशों के बीच अपराधियों के आदान-प्रदान की शर्तें शामिल हैं। पर किसी अपराधी का प्रत्यर्पण तभी किया जाएगा, जब अपराध दोनों देशों में अपराध माना जाए। न्यूनतम एक वर्ष की सजा दी गई हो आैर आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हो।

वह दो आधार…जिनके कारण नहीं हो सकता प्रत्यर्पण
राजनीतिक अपराध का प्रावधान: संधि के अनुच्छेद 6 के अनुसार, यदि अपराध राजनीतिक माना जाता है, तो भारत प्रत्यर्पण से इन्कार कर सकता है। हालांकि, हत्या, नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध इस धारा से बाहर हैं। आईसीटी ने शेख हसीना को इन गंभीर आरोपों में दोषी पाया है। इसलिए, भारत यह नहीं कह सकता कि पूरा मामला राजनीतिक है।

निष्पक्ष सुनवाई का अभाव: संधि के अनुच्छेद-8 के तहत यदि अभियुक्त की जान को खतरा है, निष्पक्ष सुनवाई नहीं होती, या न्यायाधिकरण का उद्देश्य न्याय नहीं बल्कि राजनीतिक है, तो भारत प्रत्यर्पण से इन्कार कर सकता है। भारत यह सब आसानी से साबित कर सकता है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र पहले ही न्यायाधिकरण के गठन, न्यायाधीशों की नियुक्ति और प्रक्रियाओं पर सवाल उठा चुका है। शेख हसीना को अपना पक्ष रखने के लिए वकील नहीं मिला। कई रिपोर्टों बताती हैं कि न्यायाधीशों पर सरकार का दबाव था।

प्रत्यर्पण से इन्कार करने पर क्या होगा
संबंध बिगड़ेंगे, कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा : बांग्लादेश कह सकता है कि भारत न्यायिक निर्णयों का सम्मान नहीं कर रहा। कूटनीतिक बयानबाजी बढ़ेगी पर संबंध तोड़ना मुश्किल है, क्योंकि बांग्लादेश व्यापार व ऊर्जा आपूर्ति जैसी कई चीजों के लिए भारत पर निर्भर है।

रणनीतिक बदलाव के आसार: अगर बांग्लादेश की तरफ से चीन-पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ाई जाती हैं, तो भारत के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। एक पाकिस्तानी युद्धपोत पहले ही बांग्लादेश पहुंच चुका है। यूनुस हाथ में ग्रेटर बांग्लादेश का नक्शा लिए खड़े देखे गए और व्यापार युद्ध जैसे हालात बन गए। इससे भारत पूर्वोत्तर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक असुरक्षित हो सकता है।

परेशान करने वाली बात
घरेलू और विदेशी, दोनों ही स्तरों पर मैं मृत्युदंड में विश्वास नहीं करता। किसी की गैरहाजिरी में मुकदमा चलाना, जब किसी को अपना बचाव करने और अपनी बात रखने का मौका नहीं मिलता और फिर आप सजा-ए-मौत दे देते हैं, यह अनुचित है… यह बहुत परेशान करने वाली बात है। -शशि थरूर, कांग्रेस नेता

हसीना के पास आगे क्या रास्ता

कानूनी विकल्प
फैसले को बांग्लादेश के उच्च न्यायालय में चुनौती दें। सबूतों की दोबारा जांच और अनुचित सुनवाई का हवाला देकर पुनर्विचार की मांग कर सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों या कानूनी संस्थाओं में शिकायत करें। ये संस्थाएं किसी देश के अदालत फैसले को सीधे तौर पर पलट नहीं सकतीं, पर निष्पक्ष सुनवाई का दबाव बना सकती हैं।

राजनीतिक विकल्प
अपनी जान को खतरा बताते हुए भारत या किसी अन्य देश में शरण या सुरक्षा की मांग कर सकती हैं। अवामी लीग अन्य देशों पर बांग्लादेश में चल रहे मुकदमे पर सवाल उठाने या सजा रोकने की मांग करने का दबाव डाल सकती है। जनसमर्थन जुटाकर सरकार पर सजा में नरमी या समझौते का दबाव बना सकती है।

संयुक्त राष्ट्र या आईसीसी की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र व अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) की भूमिका सीमित है। यूएन मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच कर सकता है, निष्पक्ष सुनवाई पर सवाल उठा सकता है मामले को आईसीसी भेज सकता है। अगर आईसीसी मुकदमे में अनियमितताएं पाता है, तो भारत उस फैसले के आधार पर हसीना को वापस भेजने से इन्कार कर सकता है।

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