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निमिषा प्रिया को बचाने की कोशिश कर रही भारत सरकार, यमनी कोर्ट ने मृत्युदंड की सुनाई है सजा

July 09, 2025

नई दिल्‍ली । भारतीय नागरिक निमिषा प्रिया (Indian citizen Nimisha Priya) की फांसी को टालने के लिए भारत सरकार (Government of India) हरसंभव प्रयास कर रही है। निमिषा को यमन (Yemen) में वहां के नागरिक की हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है। अधिकारियों के मुताबिक, उनकी फांसी 16 जुलाई को निर्धारित की गई है और इसको टालने के लिए कूटनीतिक और मानवीय स्तर पर प्रयास जारी हैं।

निमिषा प्रिया को जुलाई 2017 में अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो मेहदी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 2020 में यमनी अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। नवंबर 2023 में यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने उनकी अपील खारिज कर दी थी। वे फिलहाल सना की एक जेल में बंद हैं, जो हूती विद्रोहियों के नियंत्रण में है।

पूरे मामले पर भारत सरकार की नजर
भारत सरकार के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “जब से उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है, हम इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। यमनी अधिकारियों और उनके परिवार से लगातार संपर्क में हैं और हरसंभव सहायता प्रदान कर रहे हैं। हम फांसी को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।” निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड की रहने वाली हैं।


मामले की जटिलता इस कारण और बढ़ गई है क्योंकि भारत की हूती विद्रोहियों से कोई आधिकारिक बातचीत की व्यवस्था नहीं है। निमिषा की मां प्रेमकुमारी पिछले साल यमन गई थीं ताकि मृतक के परिजनों से बातचीत कर समझौता किया जा सके। इस प्रयास में यमन में बसे कुछ अनिवासी भारतीय उनकी मदद कर रहे हैं। सरकार ने संसद में पहले भी बताया था कि वह निमिषा के परिवार को हरसंभव सहायता दे रही है।

“ब्लड मनी” देकर बचाने की कोशिश
निमिषा की जान बचाने की उम्मीद अब यमनी कानून के तहत “दियात” या “ब्लड मनी” पर टिकी है, जिसमें पीड़ित के परिवार को मुआवजा देकर सजा माफ कराई जा सकती है। सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम बास्करन निमिषा की मां प्रेमा कुमारी के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक हैं। उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार को 10 लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग 8.5 करोड़ रुपये) की पेशकश की गई है, लेकिन परिवार ने अभी तक इस प्रस्ताव का जवाब नहीं दिया। जेरोम ने कहा, “मैं बुधवार को यमन पहुंच रहा हूं ताकि तलाल के परिवार के साथ बातचीत फिर से शुरू की जा सके।”

क्या है पूरा मामला?
निमिषा प्रिया 2008 में अपने माता-पिता की आर्थिक मदद के लिए यमन गई थीं। उन्होंने सना में कई अस्पतालों में नर्स के रूप में काम किया और 2015 में तलाल अब्दो मेहदी के साथ मिलकर एक क्लिनिक खोला, क्योंकि यमनी कानून के तहत विदेशी नागरिकों को स्थानीय भागीदार के बिना व्यवसाय शुरू करने की अनुमति नहीं है। निमिषा के परिवार का दावा है कि तलाल ने उनके साथ धोखाधड़ी की, उनकी आय का हिस्सा नहीं दिया, और उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया। निमिषा ने तलाल को बेहोश करने के लिए उसे सेडेटिव इंजेक्शन दिया ताकि अपना पासपोर्ट वापस ले सकें, लेकिन ओवरडोज के कारण तलाल की मौत हो गई। इसके बाद निमिषा और उनकी एक यमनी सहकर्मी हनन ने तलाल के शव को टुकड़ों में काटकर एक पानी की टंकी में फेंक दिया।

परिवार और समर्थकों की कोशिशें
निमिषा की मां प्रेम कुमारी पिछले साल से यमन में हैं और अपनी बेटी की रिहाई के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय से यमन की यात्रा की विशेष अनुमति ली थी। “सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल” ने भी ‘ब्लड मनी’ के लिए धन जुटाने की कोशिश की, जिसमें जून 2024 तक 40,000 अमेरिकी डॉलर इकट्ठा किए गए। हालांकि, भारतीय दूतावास द्वारा नियुक्त वकील अब्दुल्ला अमीर ने 40,000 डॉलर की अतिरिक्त फीस मांगी, जिसके कारण बातचीत में देरी हुई।

पैसों पर पैसे मांगता रहा वकील
नीमिशा के लिए न्याय की मांग करने वाले राजनेताओं, व्यापारियों, कार्यकर्ताओं और प्रवासियों के फोरम का हिस्सा रहे वकील सुभाष चंद्रन ने बताया कि कोच्चि में घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने वाली प्रिया की मां ने केस लड़ने के लिए अपना घर बेच दिया। मनोरमा ऑनलाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित परिवार के साथ ब्लड मनी पर बातचीत सितंबर 2024 में अचानक रुक गई थी, जब भारतीय दूतावास द्वारा नियुक्त वकील अब्दुल्ला अमीर ने 20,000 डॉलर (करीब 16.6 लाख रुपये) की प्री-नेगोशिएशन फीस की मांग की थी।

विदेश मंत्रालय ने पिछले साल जुलाई में अमीर को 19,871 डॉलर दिए थे, लेकिन उन्होंने बातचीत फिर से शुरू करने से पहले दो किस्तों में देय 40,000 डॉलर की कुल फीस पर जोर दिया। सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल ने क्राउडफंडिंग के ज़रिए अमीर की फीस की पहली किस्त जुटाने में कामयाबी हासिल की। ​​हालांकि, बाद में उन्हें कथित तौर पर इस बात को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ा कि दानदाताओं को इस बात की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी कि फंड का इस्तेमाल कैसे किया जा रहा है।

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