
नई दिल्ली । पाकिस्तान(Pakistan) में फिजिक्स(Physics) के मशहूर प्रोफेसर और इतिहास की अच्छी जानकारी रखने वाले परवेज हुदभाय(Parvez Hoodbhoy) ने अपने देश की शिक्षा व्यवस्था(education system) पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के एजुकेशन सिस्टम पर मदरसों की छाप है और सेकुलर कोर्स ना होने के चलते साइंस, मैथ्स जैसे सब्जेक्ट बच्चे अच्छे से नहीं पढ़ पाते हैं। इसके कारण पाकिस्तान की शिक्षा का स्तर गिर रहा है और दुनिया भर में नौकरी के लिए जाने वाले पाकिस्तानी निचले स्तर के काम करने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि हालात ये हैं कि सरकार मदरसों में कोई सुधार नहीं कर पाई, लेकिन उसके अपने स्कूलों की पढ़ाई मदरसों जैसी ही हो गई है।
फरजाना अली के साथ पॉडकास्ट में हुदभाय ने पाकिस्तानी एजुकेशन सिस्टम की सारी परतें खोल दीं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां की पढ़ाई ऐसी है कि कोई नौकरी नहीं मिलती। यहां से बाहर दुबई, शारजाह और सऊदी अरब जाने वालों को नौकरियां तो मिलती हैं, लेकिन वह उनकी खिदमत करने की होती है। यहां से जाकर वे लोग अरबों के ड्राइवर बन जाते हैं, सड़कें साफ करते हैं या फिर खाना बनाते हैं। आपको पता है कि पिछले साल 80 फीसदी वीजा जो दिए गए, वे ड्राइवर के लिए थे। यह जानते हुए भेजा गया कि वे ऐसा काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि आप इनके मुकाबले भारतीयों को देखेंगे तो वे निचले काम नहीं करते। वे मैनेजर, इंजीनियर हैं, प्रोफेसर या फिर किसी ऊंचे पद पर हैं। पाकिस्तान के मुकाबले भारत के लोगों की पढ़ाई बहुत अच्छी है। दुनिया में पाकिस्तानी शीर्ष पदों पर आटे में नमक के बराबर ही मिलेंगे। दूसरे मुल्कों में जाने वाले ज्यादातर पाकिस्तानी तो खिदमतगार के तौर पर ही जाते हैं। वह इसलिए कि हमने जितनी घटिया तालीम उन्हें दी है, वे किसी शीर्ष काम के काबिल ही नहीं होते।
पाक का एजुकेशन सिस्टम मजहब की बात करता है, दुनिया की नहीं
परवेज हुदभाय ने कहा कि यहां जो परंपरागत पढ़ाई चल रही है, वह मजहब के बारे में ही है। किसी हुनर या फिर नई चीज की पढ़ाई तो होती ही नहीं है। उन्होंने कहा कि तालीम वह होनी चाहिए, जो वक्त के हिसाब से हो। चीजें बदलती रहती हैं और किसी दौर में प्रॉब्लम सॉल्विंग की ताकत आपके पास कितनी है।
वही नॉलेज है और लैंग्वेज स्किल की भी अहमियत है। यदि ऐसा कुछ होता है तो आपके अंदर कॉन्फिडेंस आता है। उन्होंने कहा कि रियावती तालीम तो एक हजार साल से नहीं बदली है क्योंकि मजहब में कोई बदलाव नहीं होता। हमारे यहां मदरसे हैं, जो रिवायती तालीम देते हैं, लेकिन यहां तो सरकारी संस्थान भी मदरसे की तरह ही हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अब स्कूलों और मदरसों की तालीम में कोई अंतर नहीं दिखता है।
‘मदरसे सुधरे नहीं और स्कूल ही उनके जैसे बन गए’
परवेज हुदभाय ने कहा कि पाकिस्तान में होना यह चाहिए था कि मदरसों में सुधार किया जाता। लेकिन यहां हुआ यह कि सरकारी स्कूलों को भी मदरसे जैसा बना दिया गया। इमरान खान के दौर में इसमें और तेजी आई। उन्होंने कहा कि पिछले 200 सालों से यह कोशिश हो रही है कि मदरसों का आधुनिकीकरण किया जाए। सच यह है कि मदरसों में विज्ञान उसी तरह पढ़ाई जाती है, जैसे कुरान की पढ़ाई होती है। उसमें कोई चुनौती नहीं होती, कोई प्रॉब्लम सॉल्विंग नहीं सिखाई जाती।
सिंगापुर के मदरसे का दिया दिलचस्प उदाहरण, कहा सुधार नहीं हो सकता
उन्होंने कहा कि मुझे सिंगापुर में मुस्लिम एसोसिएशन ने बुलाया था। मेरा वहां लेक्चर था और उसके बाद मैं एक मदरसे में आ गया, जिसका नाम था- मदरसा अल मोहाजिरिन है। उन्होंने हमें बताया कि हम इस मदरसे में दीनी तालीम देते हैं और दूसरी तरफ सिंगापुर के सिलेबस को भी पढ़ाते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि ये बच्चे सिंगापुर के सिलेबस से जुड़ी जब परीक्षा देते हैं तो अकसर फेल हो जाते हैं।
इसके बाद मैंने किताबें देखीं तो समझ में आया कि अंतर क्या है। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों की पढ़ाई से लेकर किताब और अध्यापकों तक में बड़ा अंतर था। पाकिस्तान की यही समस्या है और इसी के चलते भारत हमसे कहीं आगे निकल गया। उन्होंने कहा कि आप कुछ भी कर लीजिए, लेकिन मदरसों को बदला नहीं जा सकता।
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