
नई दिल्ली। भातर एक बार फिर से कुछ बड़ा करने जा रहा है. यही वजह है कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंगाल की खाड़ी में 2520 किलोमीटर तक के लिए NOTAM (Notice to Airmen/Air Mission) जारी किया है. इसका मतलब यह हुआ कि तय तिथि और समय पर बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में संबंधित रूट से न तो कोई एयरक्राफ्ट गुजरेगा और न कोई शिप इस मार्ग से ट्रैवल करेगा. इसका उद्देश्य किसी भी तरह की दुर्घटना को रोकना है. भारत ने बे ऑफ बंगाल में ढाई हजार किलोमीटर के नो फ्लाई जोन की घोषणा ऐसे वक्त में की है जब पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में किसी ने किसी वजह से हाहाकार और खलबली की स्थिति है. बांग्लादेश में चुनाव आयोग के दफ्तर को आमलोगों ने आग के हवाले कर दिया तो पाकिस्तान में देश के लिए वफादार मानी जाने वाली खुफिया एजेंसी ISI के पूर्व चीफ फैज हमीद का ही कोर्ट मार्शल कर दिया गया है।
डीआरडीओ (DRDO) ने 17 से 20 दिसंबर 2025 के बीच बंगाल की खाड़ी में एक मिसाइल परीक्षण तय किया है. इसके कारण 2520 किलोमीटर तक का बहुत बड़ा नो फ्लाई और नो शिप जोन घोषित किया गया है. यह NOTAM रोजाना सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे (भारतीय समय के अनुसार) तक लागू रहेगा. यह अक्टूबर में हुए परीक्षण के 1480 किलोमीटर क्षेत्र से कहीं बड़ा है, जिससे संकेत मिलता है कि इस बार लंबी दूरी की मिसाइल का परीक्षण हो सकता है. सुरक्षा कारणों से नागरिक विमान और जहाजों को अपना रास्ता बदलना होगा. भारतीय वायुसेना और नौसेना इस क्षेत्र की निगरानी करेंगी, क्योंकि परीक्षण के दौरान मलबा गिरने की आशंका रहती है।
DRDO की क्या है प्लानिंग?
अब सवाल उठता है कि DRDO की आखिर प्लानिंग क्या है जो ढाई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा के क्षेत्र के लिए NOTAM जारी किया गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस ट्रायल का स्वरूप K-4 पनडुब्बी से दागी जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) से मेल खाता है. यह भारत की आधुनिक ठोस ईंधन (Solid Fuel) वाली मिसाइल है, जो अग्नि मिसाइल सीरीज पर आधारित है. K-4 कार्यक्रम का उद्देश्य परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बी से दागी जाने वाली मिसाइल विकसित करना है, ताकि भारत के परमाणु त्रिकोण (थल-जल-वायु) के समुद्री हिस्से को मजबूत किया जा सके. यह छोटी दूरी की K-15 सागरिका की सीमाओं को दूर करती है. डीआरडीओ की डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेटरी (DRDL) के नेतृत्व में बनी यह मिसाइल अग्नि-III तकनीक पर आधारित है, जिससे इसकी सुरक्षा और दूसरी बार जवाबी हमले की क्षमता बढ़ती है. इसका विकास 2009 में आईएनएस अरिहंत के लॉन्च के बाद शुरू हुआ।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved