
नई दिल्ली । जगद्गुरु रामभद्राचार्य(Jagadguru Ramabhadracharya) इन दिनों सुर्खियों में हैं। संत प्रेमानंद महाराज(Saint Premananda Maharaj) पर दिए गए बयान(Statement) को लेकर वह काफी चर्चा में हैं। एक पॉडकास्ट में रामभद्राचार्य ने अपने जीवन समेत धर्म आदि पर भी विभिन्न सवालों के जवाब दिए हैं। इसी दौरान उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी जाने और इलाज न कराने की बात भी बताई है। रामभद्राचार्य से पूछा गया था कि क्या कभी उनकी इच्छा संसार को देखने की नहीं हुई? इसके जवाब में उन्होंने अपने मन की बात कही है। साथ ही रामभद्राचार्य ने यह भी बताया है कि उनके इलाज का ऑफर इंदिरा गांधी तक ने दिया था। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। बता दें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य शास्त्रों के जानकार हैं। बिना आंखों के भी उन्होंने रामचरितमानस समेत विभिन्न धर्मग्रंथों को कंठस्थ कर रखा है।
मैंने स्पष्ट इनकार कर दिया
रामभद्राचार्य हाल ही में शुभांकर मिश्रा के पॉडकास्ट में आए थे। इस दौरान उनसे सवाल किया गया कि कभी ये सांसारिक जीवन, लोगों को, अपनों को देखने की इच्छा नहीं हुई? फिर आगे रामभद्राचार्य से पूछा गया कि बीच में ऐसा सुनने में आया था कि सरकार ने आपके नेत्रों के इलाज के लिए कहा था। इस पर रामभद्राचार्य ने बताया कि मुझे सरकार ने भी कहा था। साल 1974 में इंदिरा गांधी ने भी कहा था। मफतलाल ग्रुप ने भी कहा था, लेकिन मैंने इससे स्पष्ट इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि मैंने इसलिए मना कर दिया, क्योंकि यह संसार देखने का अब मेरा मन नहीं होता। इस जवाब पर रामभद्राचार्य से फिर पूछा गया कि आखिर उन्हें संसार देखने की इच्छा क्यों नहीं है? इस पर उन्होंने कहा कि यह संसार देखने योग्य नहीं है। देखने योग्य तो केवल भगवान राम हैं।
आंखों के लिए इंदिरा गांधी ने क्या कहा था
इसके बाद उन्होंने एक पुरानी याद भी ताजा की। रामभद्राचार्य ने बताया कि अखिल भारतीय स्तर पर संस्कृत की पांच प्रतियोगिताएं हुई थीं तो पांचों में मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उस वक्त इनाम देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आई थीं। पहली तीन प्रतियोगिताओं में जब मैं प्रथम आया तो उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि अब बाकी दो में भी इन्हीं का नाम आएगा। इसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि आप इतने प्रतिभा संपन्न हैं। मैं आपकी आंखों के इलाज की व्यवस्था कर सकती हूं। तब मैंने उन्हें एक संस्कृत का श्लोक सुनाकर बताया था कि आखिर मैं क्यों फिर से नहीं देखना चाहता। श्लोक का अर्थ बताते हुए रामभद्राचार्य ने कहा कि अब इस संसार में कुछ देखने योग्य नहीं है। इसमें दोष हैं। इसमें रहने वाले मायाचार से युक्त हैं। यहां पाप है। अब तो दृष्टव्य केवल, घुंघराले बालों से जिनका मुखारविंद सुशोभित हो रहा है, ऐसे बालरूप भगवान राम ही देखने योग्य हैं।
मात्र दो माह की उम्र में खो दी थी आंखों की रोशनी
गौरतलब है कि रामभद्राचार्य की आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गई थी। मात्र दो महीने की आयु में ट्रेकोमा बीमारी के चलते वह देखने में अक्षम हो गए। हालांकि इसके बाद भी उन्होंने विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए तमाम धर्मग्रंथों को याद कर लिया। अपने दादा सूर्यबली मिश्रा की देख-रेख में रामभद्राचार्य की शिक्षा-दीक्षा हुई। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के गांव में जन्मे रामभद्राचार्य ने आगे चलकर धर्म और समाज के लिए खूब काम किया। एक तरफ उन्होंने धार्मिक मामलों में अपना लोहा मनवाया। दूसरी तरफ सामाजिक जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करते हुए तमाम वंचितों को शिक्षा और आश्रय का सहारा दिया।
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